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१९० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श एवं भरत सिंह उपाध्याय से कोई सूचना नहीं मिलती है। कुशीनगर में अशोक स्तम्भ की अनुपलब्धि आश्चर्यजनक और विस्मयकारक है।
कुशीनगर के इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यहाँ से प्राप्त एक प्रस्तरालेख ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। पी० वी० काणे के अनुसार कुशीनगर से प्राप्त कलचूरि प्रस्तराभिलेख ( एपि० इण्डि० जिल्द-८, पृ०-१२८ ) में गद्य में पहले रुद्र और उसके उपरान्त बुद्ध का आह्वान हुआ है । प्रथम दो श्लोक शक: को स्तुति में हैं, तीसरा तारा ( बौद्ध देवी ) की स्तुति में तथा चौथा एवं पाचवाँ श्लोक बुद्ध (मुनींद्र) की प्रशंसा में कहा गया है। इसके विषय में डा० अरविन्द कुमार सिंह का मत है कि कुछ पंक्तियाँ वंदना स्वरूप हैं जिसमें शिव को मुख्य स्थान प्राप्त है। उक्त अभिलेख कलचुरि शासकों के शैव-मतावलम्बी होने को पुष्टि करता है । बौद्ध धर्म के प्रति भी उनका दृष्टिकोण उदार था। तारा, बुद्ध आदि अनके बौद्ध देवी-देवताओं का वर्णन अभिलेख में हुआ है । कुशीनगर प्रस्तराभिलेख से ज्ञात होता है कि किस प्रकार बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय पर हिन्दू धर्म की छाप पड़ी हुई है जैसा कि मुख्य प्रतिमा के चारों ओर किनारे के भागों में इतर देवी-देवताओं (शंकर, विष्णु आदि ) की प्रतिमाएँ एवं प्रशस्तियाँ अंकित होने से स्पष्ट है। इसी विषय की पुष्टि करते हए डा० राजबली पाण्डेय का कथन है कि काले प्रस्तर पर “ॐ नमो बुद्धाय । नमो बुद्धाय भिक्षुन्” उत्कीणित है । यहाँ बुद्ध के साथ 'ॐ' का प्रयोग भी महायान पर हिन्दुत्व प्रभाव को सूचित करता है । महायान ने बौद्ध धर्म में बुद्ध को ईश्वरत्व के पद पर अधिष्ठित किया। इसके साथ ही बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर तथा अनेक देवी-देवताओं की कल्पना की गयी है।" कुशीनगर अभिलेख के काल के विषय में लिपि-शास्त्र के आधार पर दयाराम साहनी, एच० सी० रे० इत्यादि विद्वानों के विचारों का विवेचन करते
१. काणे, पी० वी०;-धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग ४, हिन्दी संस्थान,
उ० प्र०, द्वि० सं० १९८४ लखनऊ, पृ० ४९७-९८, २. सिंह, अ० कु०- सरयूपार, कसिया एवं कहला अभिलेखों के प्रकाश में, युग
युगीन सरयूपार, पृ० ५-१० ३. डा० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास, पृ० १६४,
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