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पावा-पड़रौना अनुशीलन साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर पावा का विवेचन करने से प्रतीत होता है कि विद्वान् इतिहासकार एवं पुरातत्त्ववेत्ता पावा के सम्बन्ध में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं। अतःपावा की वास्तविक स्थिति के निर्णय के प्रयास हेतु पूर्ववर्ती सभी साहित्यिक, पुरातात्त्विक एवं अभिलेखीय साक्ष्यों पर सांगोपांग विचार के साथ-साथ विभिन्न विद्वानों द्वारा कृत अध्ययन की समीक्षा प्रस्तुत करना आवश्यक है।
पावा के सम्बन्ध में सर्वप्रथम सूचना यह मिलती है कि पावा का सम्बन्ध मल्ल राष्ट्र से रहा है। रामायण काल में जहाँ तक मल्लराष्ट्र का प्रश्न है लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु के राज्याभिषेक हेतु जिस राज्य की स्थापना की गई थी और जिसकी राजधानी चन्द्रकान्ता थी अपने राजा के गुणों के आधार पर वह मल्ल राज्य कहा जाने लगा। महाभारत काल आते-आते यह चन्द्रकेतु के राज्य के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था। महाभारत में दो मल्लराज्यों का उल्लेख है-मुख्य मल्ल राज्य एवं दक्षिणी मल्ल राज्य । मुख्य मल्ल राज्य से पावा-पड़रौना सम्बन्धित रहा है। मल्लराज्य को ककूत्था नदी दो भागों में विभाजित करती थी। उत्तरी मल्लराज्य (मुख्य मल्लराज्य) की राजधानी चन्द्रकान्ता थी तथा दक्षिणी मल्ल राज्य की राजधानी कुशीनारा थी। कालान्तर में मुख्य मल्लराज्य के नागरिकों को 'पावा के मल्ल' तथा दक्षिणी मल्ल राज्य के नागरिकों को 'कुशीनारा के मल्ल' कहा जाता था। यदि पडरौना की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन किया जाय तो ज्ञात होगा कि पड़रौना कुशीनगर से उत्तर, उत्तर-पूर्व में स्थित है, पड़रौना तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का सामंजस्य महाभारतकालीन मुख्य मल्ल राज्य की
१. ततो गोपालकक्षं च सोत्तरानपि कोसलान् ।
मल्लानामधिपं चैव पार्थिवं चाजयत् प्रभुः ॥३॥ ततो दक्षिणमल्लाञ्च भोगवन्तं च पर्वतम् । तरसैवाजयद् भीमो नातितीव्रण कर्मणा ।।१२।। महाभारत, सभापर्व, दिग्विजयपर्व श्लोक ३, १२, पृष्ठ ७५२ गीताप्रेस, गोरखपुर।
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