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२२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श जैन श्रमणों में उत्पन्न कटुता, कलह, ईर्ष्या तथा प्रतिद्वन्द्विता का ज्ञान होता है । जब बुद्ध सामगाम में वर्षावास कर रहे थे अपना वर्षावास समाप्त कर चन्दश्रमणोददेश्य पावा से वहाँ आया। आनन्द को उसने महावीर के निर्वाण और जैनश्रमणों के परस्पर द्वेष और लड़ाई की सूचना दी। उनके अनुयायी दो दलों में विभक्त होकर ऐसे विवाद कर रहे थे मानो परस्पर युद्ध हो रहा हो। चुन्द एवं आनन्द दोनों ने बुद्ध के पास जाकर यह सचना दी। इसी प्रसंग में आनन्द ने अपने मन की शंका प्रकट की कि महावीर के परिनिर्वाण के बाद जैसे उनके भिक्षुओं में कलह व प्रतिद्वन्द्विता चल रही है वैसे ही आपके न रहने पर अपने (बौद्ध) संघ में न चलने लगे।
दीघनिकाय के 'पासादिक सुत्त' से भी पावा में महावीर के निर्वाण के पश्चात् उनके अनुयायियों में फूट की झलक मिलती है। उस समय बुद्ध शाक्यदेश में वधज्जा नामक आम्रवन प्रासाद में विहार कर रहे थे जब चुन्द और आनन्द ने उक्त वृत्तान्त बताया। इस अवसर पर बुद्ध ने चुन्द को उपदेश दिया-जहाँ शास्ता ( गुरु ) सम्यक् बुद्ध नहीं होता, धर्म दुराख्यात होता है। अतः चुन्द ! जिस धर्म का मैंने बोधकर उपदेश किया है उसे सभी मिल-जुलकर सम्यक रूप से समझें, बूझें, विवाद न करें। ___ दीघनिकाय' के 'संगीति परिपाप सुत्त के अनुसार महावीर के निर्वाण के पश्चात् ५०० भिक्षुओं सहित मल्लदेश में चारिका करते हुए पावा पहुँचकर बुद्ध ने कम्मरिपुत्र के आम्रवन में विहार किया । पावा के मल्लों ने नवनिर्मित उन्नति (उन्मतक ) संस्थागार का उद्घाटन करने हेतु उनसे निवेदन किया । बुद्ध भिक्षुसंघ के साथ सभागार में पधारे । धर्मकथा द्वारा उन्होंने पावावासी मल्लों को समुत्तेजित एवं सम्प्रहर्षित किया। जब मल्ल संस्थागार से चले गये तब बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को शान्त देखकर सारिपुत्र को धर्मकथा सुनाने हेतु आमंत्रित किया। सारिपुत्र ने भिक्षुओं को उपदेश दिया एवं सूचित किया कि निर्ग्रन्थ ज्ञात पुत्र पावा में अभी-अभी कालगत हए और निग्गण्ठों में फूट पड़ गई और वे दो भागों
१. दीघ निकाय ( पासादिक सुत्त) ३/६ (हि.) पं० सांकृत्यायन राहुल व
भिक्षु जगदीश कश्यप, भारतीय बौद्ध विहार परिषद्, लखनऊ, द्वि० सं०
____२. वही, संगीति परिपाप सुत्त
३/१०
वही
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