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२४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
भगवा तेनु पसङ्कमि उपसङ्कमित्वा भगवतो अविदूरे तिक्खतु "अक्कुलो कुलो" ति अक्कुल पक्कुलिकं अकासि एसो ते समण पिसाचो ति । अथ खो भगवा एतमत्थं भिदित्वा तापं वेलायं इमं उदानं उदानेसि । यदासकेसु धम् पारगू होति ब्राह्मणो अथ एतं पिसाच च पक्कुल बातिक्ततीति ॥"
इसी आधार पर मल्लसेकर' ने भी इसे पावा में ही स्थित माना है । भरत सिंह उपाध्याय एवं कृष्णदत्त वाजपेयी ने इसका समर्थन किया है।
भौगोलिक अध्ययन की दृष्टि से 'महापरिनिव्वाणसुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें महापरिनिव्वाणपूर्व राजगृह से कुशीनगर की यात्रा तथा मार्ग में पड़ने वाले पड़ावों का विवरण प्राप्त होता है । इस ग्रन्थ के विवरण में इतनी मौलिकता है कि प्रतीत होता है कि वास्तविक यात्रा के आधार पर वर्णन किया गया है । विशाल भिक्षु संघ के साथ पावा पहुँच - कर चुन्द कर्मकार के आम्रवन में बुद्ध द्वारा विहार करने पर चुन्द उनके समीप पहुँचा और अपने घर आहार ग्रहण करने हेतु आमन्त्रित किया । . बुद्ध द्वारा चुन्द के घर सूकर-मर्दव ग्रहण करने का उल्लेख है । भोजनोपरान्त बुद्ध को रक्तातिसार की बीमारी हुई । इसी व्याधि में वे भिक्षु संघ के साथ कुशीनगर के लिए प्रस्थान किये थे ।
सुमङ्गलविलासिनी" से बुद्ध के महापरिनिव्वाण के पूर्व पावा- विहार का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । इसमें भी बुद्ध द्वारा चुन्द कर्मकार के निवास पर बुद्ध के भोजन ग्रहण करने का विवरण है । यहाँ उल्लेख है कि सूकरमार्दव एक विशेष प्रकार की रसायन विधि द्वारा निर्मित भोजन था
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१. मल्लसेकर, जी० पी०, डिक्शनरी आव पालिप्रापर नेम्स, पृ० १९३, लन्दन, १९३८ ।
२. उपाध्याय, भरत सिंह, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ० ३१२, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग प्र० सं० १९६१
३. प्रो० वाजपेयी, के० डी०, लोकेशन आव पावा, पृ० ५६ ।
४. दीर्घनिकाय ( महापरिनिव्वाणसुत्त) हि०, पं० राहुल सांकृत्यायन एवं भिक्षु जगदीश काश्यप, पृ० १२२-१४०, भारतीय बौद्धविहार परिषद्, लखनऊ, द्वि० सं० १९९९ ।
५. सुमंगल विलासिनी ( दीघनिकाय अ० क० ) टोका प्रो० महेश तिवारी, द्वि० भा०, पृ० २७५, नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, पटना, १९७४ |
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