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मल्लराष्ट्र : ३७ दक्षिणी-पूर्वी तथा देवरिया जनपद का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र था, जो पश्चिम में राप्ती नदी के किनारे डीह घाट से लेकर पूर्व में वर्तमान बरहज नगर तक था । इसके अन्तर्गत राप्ती, गुर्रा, फरेन्द्र (पूर्व में वथूवा ) तथा करुणा (कुर्ना) नदियाँ थीं । आज भी नदियों के किनारे राजधानी (धानी) के अतिरिक्त मीथावेल, नाथ नगर, रुद्रपुर, दोनापार, मदनपुर, बराँव, समोगर, महेन, कपरवार, बरहज इत्यादि स्थानों पर प्राचीन नगरों के ध्वंसावशेष दृष्टिगोचर होते हैं ।
मगध राज्य
पालि- विवरणों के अनुसार बिम्बसार के राज्य का विस्तार कोसल के समान ३०० योजन था । उसमें २०० योजन की वृद्धि अजातशत्रु ने की थी। इस प्रकार मगध की सीमा काफी विस्तृत हो गयी । मगध राज्य पूर्व में अंग राज्य ( जिसमें अंगुत्तराप अर्थात् गंगा और कोसी नदी के मध्य अंगदेश का भी भाग सम्मिलित था) की अन्तिम सोमा कोसी नदी तक फैला हुआ था । मगध के दक्षिण-पूर्व में सुह्यों का जनपद था, दक्षिण में कलिंगारण्य तथा उत्तर में वज्जिगणतन्त्र था । जो मही (गण्डक) नदी से लेकर बाहुमती (बागमती) नदी तक फैला हुआ था । गंगा नदी मगध एवं वज्जिगणतन्त्र को विभाजित करती थी। गंगा के दक्षिण में मगध तथा उत्तर में वज्जि गणतन्त्र था । मगध की राजधानी राजगृह थी ।
मल्ल राज्य
बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में गण्डक मल्लराष्ट्र के अन्दर से होकर बहती थी । प्राचीन महीनदी ही आधुनिक गण्डक है। मही को संयुक्तनिकाय के सम्वेज्जसुत्त' में महामही भी कहा गया है । इससे इसका बड़ी गण्डक होना सिद्ध होता है । इस नदी के एक तट पर मल्लगणराज्य स्थित था तथा दूसरे तट पर वज्जिसंघ | मल्लराष्ट्र की स्थिति वज्जिगणतन्त्र और कोसल राज्य के बीच, हिमालय की तराई
थी । इसके पूर्व या दक्षिण-पूर्व में वज्जिगणराज्य था । मल्लगणतन्त्र के पश्चिमोत्तर में शाक्य जनपद था, जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी और इसकी पश्चिमी सीमा पर अचिरावती (राप्ती) नदी थी । यह नदी कोसल और मल्ल राज्य के मध्य विभाजक रेखा थी । मल्ल राज्य के
१. उपाध्याय, भरत सिंह, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ० १३२, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्र० सं० १९६१ ।
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