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पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ७१
पर वे कनिंघम द्वारा प्रतिपादित पडरौना को पावा के रूप में स्वीकार करते हैं, जो कुशीनगर से १२ मील की दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में है तो कहीं पर वे कार्लाइल द्वारा मान्य कुशीनगर से १२ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित फाजिलनगर सठियाँव को पावा कहते हैं। ___इतना ही नहीं इस ग्रन्थ के अन्त में लेखक' द्वारा भारत वर्ष का मानचित्र प्रस्तुत किया गया है जिसमें पावा को स्पष्टतः कुशीनगर के दक्षिण-पूर्व में अंकित करते हुए स्वीकार किया गया है कि सठियाँव फाजिलनगर पावा है । ऐसा प्रतीत होता है कि लाहा स्वतन्त्र विचार नहीं बना पाये हैं, नहीं तो वे किसी एक स्थल को ही पावा घोषित करते।
उपयुक्त विवरण प्रस्तुत करने का आशय यही है कि भौगोलिक स्थिति के अनुसन्धान का अनेक विद्वानों ने प्रयास किया है, किन्तु वे सदा ही असमंजस की स्थिति में रहे हैं। इसका एकमात्र कारण यही प्रतीत होता है कि क्षेत्रों का सर्वेक्षण एवं उत्खनन सम्भव नहीं हो पाया है और साहित्यिक साक्ष्यों पर विद्वान् गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं कर पाये हैं। पावा-पपउर
देवरिया जनपद के अन्तर्गत पडरौना तहसील में पडरौना से ६ मील उत्तर-पश्चिम में पडरौना-रामकोला राजमार्ग के उत्तर तथा पडरौनारामकोला रेलवे लाइन के उत्तर-दक्षिण दोनों तरफ पपउर ग्राम बसा हआ है। इसकी जनसंख्या लगभग २००० है। पपउर ग्राम से १४ फलांग पश्चिम में पपउर 'धूस' (टीला ) रेलवे लाइन के दोनों तरफ (उत्तर और दक्षिण में) स्थित है। इस धूस पर माँ काली का मन्दिर है। ___पं० राहुल सांकृत्यायन प्रथम विद्वान् थे जिन्होंने पपउर को पावा की संज्ञा दी थी। लेकिन इस स्थल के निर्वाण भूमि होने के सम्बन्ध में उन्हें संशय प्रतीत होता है। एक ओर वे कसया से १२ मील उत्तर-पूरब स्थित पडरौना को पावा के रूप में मान्यता देते हैं तो दूसरी ओर पडरौना के समीपस्थ पपउर को निर्माण भूमि (पावा) मानते हैं ।२।।
१. डॉ० लाहा, विमलचरण--ज्याग्रफी आव अर्ली बुद्धिज्म, पृ० १९, लंदन
१९३२। २. पं० सांकृत्यायन, राहुल, बुद्धचर्या (हिन्दी), पृ० ३५२ ।
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