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७० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
शार्पेन्टियर' भी पावा-विषयक बौद्ध साहित्य के उल्लेखों से असहमत होते हुए दक्षिण बिहार वाली पावा को मान्यता देते हैं । रोज डेविड्स पावा की स्थिति के विषय में किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाते हैं । वे बुद्धकालीन १६ महाजनपदों में से एक मल्ल जनपद की राजधानी पावा को हिमालय और गंगा के मध्य में कोशल के पूर्वं स्थित होने का अनुमान करते हैं । स्मिथ, ३ हिरणावती नदी को गण्डक से समीकृत करते हैं । हिरणावती नदी के निकट कृशावती या कुशीनारा की स्थिति मानते हैं और कुशीनारा के आस-पास पावा को खोजने का प्रयास करते हैं ।
वील एवं डॉ० विमलचरण लाहा ने पावा को कुशीनगर के अन्तर्गत माना है । इन विद्वानों के अनुसार ह्वेनसांग ने चुन्द का निवास स्थान कुशीनगर में देखा था, चूँकि चुन्द पावा का निवासी था इसलिए वे पावा एवं कुशीनगर को एक ही नगर मानते हैं ।
पावा के सम्बन्ध में डाँ० लाहा " का मत विचारणीय है जो उनकी निम्न पुस्तकों में प्राप्त होता है : १. हिस्टोरिकल ज्याग्रफी आव इण्डिया :
इस ग्रन्थ में वील द्वारा प्रतिपादित मत कि चुन्द का गृह कुशीनगर में था, के आधार पर कुशीनगर व पावा को एक बताया गया है । साथ ही स्मिथ की मान्यता कि सम्भवत: हिरण्यवती हो गण्डक है, जिसके तट पर कुशीनगर या कुशावती स्थित थी, के आधार पर कुशीनगर में ही पावा को खोजने का प्रयास किया गया है ।
२. ज्याग्रफी आव अर्ली बुद्धिज्म :
इस ग्रन्थ में लाहा संशय की स्थिति में दिखाई पड़ते हैं । किसी स्थान १. शार्पेन्टियर जे० - 'दि डेट आव महावीर इण्डियन एन्टीक्वरी' वाल्यू० XLIII पृ० ११८, १२५, १६७, बाम्बे १९१४ ।
२. डेविड्स, रोज़ - बुद्धिस्ट रिकार्ड आव द वेस्टर्न वर्ल्ड, वाल्यू० २, पृ० ३१-३२ ।
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३. स्मिथ, वी० – 'अर्ली हिस्ट्री आव इण्डिया', पृ० १६७, चतुर्थ संस्करण, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लन्दन, १९२४ ।
४. डॉ० लाहा, विमलचरण - हिस्टोरिकल ज्याग्रफी आव एन्शिएण्ट इण्डिया पु० ११६, पेरिस १९५४ ।
५. वही, पृ० ११६ ।
६. डॉ० लाहा, विमलचरण -- ' ज्याग्रफी आव अर्ली बुद्धिज्म', पृ० १९, लन्दन १९३२ ।
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