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६८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
४. उस्मानपुर :
देवरिया जनपद के अन्तर्गत फाजिलनगर से दक्षिण-पूर्व में ६ कि० मी० की दूरी पर उस्मानपुर ग्राम स्थित है । इसके पावा होने की सम्भावना से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने १९७३-७४ में यहाँ उत्खनन करवाया था । परन्तु कोई ऐसा साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ जो इसे पावा सिद्ध कर सके ।
५. झरमठिया :
देवरिया जनपद में पडरौना से दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर १२ कि० मी० दूरी पर स्थित कुबेर स्थान से ७ कि० मी० पर तुरपट्टी का टोला नुनिया पट्टी है । नुनिया पट्टी से झरमठिया १० किमी० है । इस प्रकार पडरौना से दक्षिण-पूर्व में २८ किमी० की दूरी पर सिन्दूरिया बुजुर्ग ग्रामसभा में झरमठिया है । यहाँ से १.५ कि०मी० पश्चिमोत्तर में लोह लँगड़ी ग्राम है जहाँ भग्नावशेषों का टीला है। टीले का शीर्ष भाग समतल है । सठियांव फाजिलनगर से यह उत्तर-पूर्व दिशा में ७ कि० मी० पर स्थित हैं । जनश्रुति के अनुसार इसे ५२ बीघा टीला कहा जाता है। किसी समय में यह मदनसिंह का कोट रहा है । वर्तमान में टीले को कंकालीस्थान नाम से सम्बोधित किया जाता है और यहाँ नर्वदेश्वरी शिव मन्दिर स्थापित है । कार्लाइल' ने इस टीले का विस्तृत वर्णन किया है । उनके मत में सम्भवतः इसे राजाजोबनाथ ने निर्मित कराया था । इसकी महत्ता को पुष्टि फ़्यूरर ने भी की है । पुरातत्त्व के विद्वानों का मत है कि पावा के निर्णय हेतु इस स्थल का सर्वेक्षण तथा उत्खनन होना चाहिए।
पावा के समीकृत किये जाने वाले उपरोक्त अपेक्षाकृत कम महत्त्वपूर्ण पाँच स्थलों पपतार, पवैय्या, माझा, उस्मानपुर और झरमठिया के अलावा पपउर, सठियाँव, फाजिलनगर, पावापुरी और पडरौना को पावा सिद्ध
१. इन्डियन आर्कियोलाजी रिव्यू, रिपोर्ट १९७३-७४ ।
२. कार्लाइल, ए० सी० एल०, 'आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इंडिया' रिपोर्ट १९७५-७६-७७, पृ० ११५-१६ ।
३. फ्यूरर, ए० – मानुमेन्टल एंटिक्विटीज एण्ड इन्स्क्रिप्शन्स वेस्टर्न प्राविन्सेज एण्ड अवध, पृ० २४० इन्डोलाजिकल बुक हाउस, वाराणसी
इन नार्थं
१९६९ ।
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