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चतुर्थ अध्याय पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत
जैन और बौद्ध साहित्यिक साक्ष्यों के विवेचन से स्पष्ट है कि अपापा, पावा या पापा महावीर और बुद्ध दोनों से ही सम्बद्ध रही और अपनी राजनीतिक स्थिति, कला, संस्कृति एवं वैभव की दृष्टि से इसका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। फिर भी इसकी प्राचीनता, भौगोलिक स्थिति आदि के विषय में आज भी विद्वान् सर्वसम्मत निर्णय पर नहीं पहुँच सके हैं। समय-समय पर विभिन्न स्थलियों की पहचान पावा के रूप में की जाती रही है। इस प्रकरण में अद्यावधि पावा के रूप में प्रसिद्ध या पावा संज्ञक स्थलियों का अध्ययन प्रस्तुत करेंगे।
जहाँ तक पावा की प्राचीनता का प्रश्न है विद्वानों में मतभेद है। डॉ० राजबली पाण्डेय के अनुसार इस नगरी का बद्ध-पूर्व कोई संकेत नहीं मिलता है परन्तु डॉ० बाजपेयी ने महाभारत में कई स्थलों पर पावा के उल्लेख की चर्चा की है । खेद का विषय है कि इतिहासकारों, पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा समय-समय पर प्रयास के बाद भी पावा के इतिहास एवं इसकी स्थिति के विषय में सर्वसम्मत निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सका। अद्यावधि निम्न स्थलों को पावा सिद्ध करने का प्रयास किया गया है
१. ग्राम-पपतार, तहसील-पडरौना, जनपद-देवरिया ( उ० प्र०) २. पवैय्या, जनपद-गोरखपुर ( उ० प्र०) ३. माझा, जनपद-चम्पारण (बिहार) ४. उस्मानपुर, तहसील-पडरौना, जनपद-देवरिया। उ० प्र०) ५. झरमठिया, तहसील-पडरौना, जनपद-देवरिया ( उ० प्र०) ६. पपउर, तहसील-हाटा, जनपद-देवरिया ( उ० प्र०) ७. सठियांव-फाजिलनगर,तहसील-पडरौना, जनपद-देवरिया (उ० प्र०) ८. पावापुरी, जनपद-नालन्दा (बिहार)
९. पडरौना, तहसील-पडरौना, जनपद देवरिया ( उ० प्र०) १. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसको क्षत्रिय जातियों का
इतिहास', पृ० ७७, गोरखपुर १९४६ । २. प्रो० बाजपेयी, कृष्णदत्त 'लोकेशन आव पावा', पृ० ४७, पुरातत्व , नई
दिल्ली १९८७ ।
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