________________
४४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा एक विमर्श
अवसर प्रदान किया जाता था । प्रस्ताव का किसी के द्वारा विरोध न करने पर यह उद्वाहिका के सदस्यों द्वारा स्वीकृत होता था । कल्पसूत्र में उल्लिखित गणों में सम्भवतः ९ लिच्छवि गण के तथा ९ मल्ल गण के कुल १८ कार्यवाहक अधिकारी थे ।
न्यायपालिका :
लाहा' के मतानुसार गणों की न्याय प्रक्रिया में महामात्य, विधि 'पारंगत वोहारिका ( कानून विशेषज्ञ), सूत्रधार, अट्ठकुलक ( आठ कुल ' के उच्च न्यायाधीश ), सेनापति, राजा के न्यायालयों में नीचे से ऊपर के स्तर तक अपराधी को गुजरना पड़ता था । ध्येय यह होता था कि किसी "व्यक्ति के अपराध और उस हेतु प्रदत्त दण्ड की सम्यक् प्रकार से समीक्षा कर ही उसे दण्डित किया जाय ताकि कोई निरपराध दण्डित न हो • जाय और अपराधी कृत अपराध की कोटि से कम या अधिक दण्डित न हो जाय । इस प्रकार गणराज्यों की न्याय व्यवस्था आदर्श कोटि की थी ।
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली परस्पर समानता, एकता, विचार स्वातन्त्र्य और अधिकार एवं कर्त्तव्य के बीच संतुलन के मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित थी। उस समय तक नागरिकों को गणतंत्रीय प्रणाली के संचालन का पूर्ण अनुभव प्राप्त हो चुका था, आधुनिक संसद के समान संस्थागार में कानून या विधि बनाने का प्राव
था, जिसके क्रियान्वयन हेतु कार्यपालिका ( कार्यकारिणी समिति ) गठित थी । न्यायपालिका का स्तर सर्वोच्च था । ( विधायिका), व्यवस्था - पिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका तीनों के तालमेल ने गणतंत्रीय शासन प्रणाली को सफलता के चरम शिखर पर पहुँचा दिया था ।
बुद्धकाल में मल्लराष्ट्र की व्यापारिक महत्ता थी । वहाँ के व्यापारी कुशल, साहसी, साधन-सम्पन्न थे । धर्मरक्षित के अनुसार पावावासी मल्ल व्यापारी 'पक्कुस मल्ल' रत्नजटित ५०० गाड़ियों को लेकर व्यापार के लिए जाता था । बन्धुल मल्ल सोने और हीरे की जड़ी हुई 'गदा' रखता था । वस्त्र-व्यापार, रँगाई, आदि उन्नति पर थी । यहाँ के महीन वस्त्र ( मलमल ) प्रसिद्ध थे । मल्ल नागरिक स्वयं इसका उपयोग करते थे ।
१. वैशाली इन ऐंश्येण्ट लिटरेचर, वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ १७७-७८, वैशाली, बिहार, १९८५ ।
२. भिक्षु, धर्मरक्षित, कुशीनगर का इतिहास, पृष्ठ २६, ६८, ७६, ८९, ९१, कुशीनगर ( प्रकाशन ) कुशीनगर, देवरिया, बुद्धाब्द, २४९३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org