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५८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
कपिलवस्तु में पुत्र राहुल को प्रव्रजित करने के पश्चात्, राजगृह जाने के पूर्व बुद्ध मल्लराष्ट्र स्थित अनूपिया के आम्रवन में विहार कर रहे थे । उस समय शाक्य देशवासी अनिरुद्ध ने अपने अग्रज - महानाम से प्रेरणा पाकर अपने मित्र शाक्यों, राजकुमार भद्दिय (भद्र ) आनन्द, भृगु, किम्बिल, देवदत्त एवं उपाली नापित के साथ वहाँ पहुँचकर प्रव्रज्या ग्रहण किया । 'दीघ निकाय' के पथिक सुत्त' में भी बुद्ध के अनूपिया कस्बे में विहार करने का उल्लेख है । यहीं भार्गव गोत्र परिव्राजक का आश्रम था, जहाँ भगवान् एक बार गये थे । 'सुखविहारी जातक क उपदेश अनूपिया के आम्रवन में ही दिया गया था ।
बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि ब्राह्मण ग्राम मल्लराष्ट्र के अन्त-र्गत था । उदान' में बुद्ध द्वारा कुछ भिक्षुओं के साथ इस ग्राम में जाने और वहाँ के ब्राह्मणों द्वारा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किये जाने का उल्लेख है । जातक से भी मल्लराष्ट्र के इसी यूण ब्राह्मण-ग्राम का परिचय मिलता है, जिसकी स्थिति मिथिला एवं हिमवन्त के बीच मानी गई है। इससे यही प्रतीत होता है कि यह यूण ब्राह्मण-ग्राम मल्ल राष्ट्र की पूर्वी सीमा पर स्थित था ।
मल्लराष्ट्र, वैशाली (वैशाली जनपद ) एवं श्रावस्ती ( बहराइच और गोंडा जनपदों) के मध्य स्थित था । इन महानगरों से बुद्ध का घनिष्ठ सम्बन्ध था । बुद्ध की चारिकाओं से ज्ञात होता है कि उनका राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु में निरन्तर आवागमन हुआ करता था । इन नगरों के आवागमन के लिए बुद्ध को मल्लराष्ट्र से होकर ही जाना पड़ता था । यहाँ के नगरों एवं निगमों में वे विहार किया करते थे, तथा यहाँ के नागरिक उनके उपदेशों से सदा ही लाभान्वित हुआ करते थे । बुद्ध के जीवन तथा देशना के सन्दर्भ में मल्लराष्ट्र की महत्ता इसी से द्योतित: होती है कि उनकी प्रथम यात्रा यहीं से प्रारम्भ हुई थी, तथा अन्तिम यात्रा भी यहीं समाप्त हुई थी ।
आवश्यकचूर्ण में महावीर द्वारा पावा में देशना देने का उल्लेख बार
१. चु० व० ७/३ - दी० नि० (पथिक सुत्त), ३ / १, पृ० ३१५ |
२. उदान ( हि० अनु० ) पृ० १०६ - १०७ ।
३. जा० प्रथम खण्ड (हि० अनु० ) पृष्ठ १०६-१०७ ।
४. आ० चू० (प्रथम भाग ), पृ० ३२२ - ३२४ ॥
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