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मल्लराष्ट्र : ४७
- सर्वज्ञ, श्रमणधर्मा, वैशालिक आदि नामों से तथा सिद्धार्थ को श्रमण, गौतमबुद्ध, शाक्यपुत्त, शाक्यमुनि, बोधिसत्व, सर्वार्थसिद्ध, तथागत, शाक्यसिंह, शौद्धोधन इत्यादि नामों से सम्बोधित किया गया है । महावीर को विदेह, विदेहकुमार, विदेहदत्त, विदेह शकमाल, त्रिशलासुत आदि संज्ञायें भी दी गई थीं। दोनों को प्रदत्त उपाधियाँ उनकी गरिमा की द्योतक हैं ।
इन दोनों महापुरुषों की समकालीनता तथा इनका काल निर्णय आरम्भ से ही विवाद का विषय रहा है। महावीर एवं बुद्ध की ज्येष्ठता • एवं कनिष्ठता तथा दोनों के निर्वाण प्राप्ति के पौर्वापर्य के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपना मत व्यक्त किया है। मुनि नगराज' ने उन सबके विचारों की समीक्षा प्रस्तुत की है । उनके अनुसार डा० आर० सो० मजुमदार, डा० एच० सी० रायचौधुरी व डा० के० के० दत्त - महावीर को बुद्ध से ज्येष्ठ तथा बुद्ध के पश्चात् निर्वाण प्राप्त करने • वाला स्वीकार करते हैं ।
डा० हर्नले, डा० के० पी० जायसवाल आदि महावीर को बुद्ध से कनिष्ठ तथा पहले निर्वाण प्राप्त करने वाला बताते हैं । डा० हर्मन याकोबी एवं डा० शार्ल शार्पेण्टियर, महावीर को बुद्ध से कनिष्ठ तो मानते हैं परन्तु निर्वाण बुद्ध के पश्चात् मानते हैं । डा० राधाकुमुद मुखर्जी महावोर को ज्येष्ठ एवं बुद्ध से पूर्व निर्वाण प्राप्त करने वाला मानते हैं ।
मुनि नगराज ने भारतीय एवं विदेशी विद्वानों के विचारों का १. मुनि नगराज, महावीर एवं बुद्ध की समसामयिकता, आत्माराम एण्ड सन्स, नई दिल्ली - ६, १९६९ ।
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द्रष्टव्य- (१) ऐन एडवान्स हिस्ट्री आफ इण्डिया, पृ० ८५-८६ । (२) इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथिक्स हास्टींग द्वारा । (३) जर्नरल आफ बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी — XIII, पृ० २४५ । (४) 'श्रमण' पत्रिका में डॉ० जैकोबी के जर्मन लेख का अनुवाद, वर्ष १३, अंक -- ७, पृ० १० । (५) इण्डियन एन्टीक्वेरी, १९१४, पृ० १२५, ११६, (६) कल्चर हिस्ट्री आफ इण्डिया, एज आफ इम्पीरियल यूनिटी, जिल्द - I पृ० ४०, पद- संकेत । ( ७ ) कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इण्डिया, जिल्द I, पृ० १५२ ।
२. मुनि नगराज, महावीर एवं बुद्ध की समसामयिकता - पृ० १०४ ॥ आत्माराम एण्ड सन्स, दिल्ली १९६९ ।
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