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मल्लराष्ट्र : ३५ जेनग्रन्थ भगवतीसूत्र में भी महाजनपदों की सूची कुछ भिन्न प्रकार से प्राप्त होती है(२) अंग
(९) पाढ़ (पाण्ड्य या पौण्ड्र) (२) बंग
(१०) लाढ़ (लाट या राढ) (३) मगध (मगह) (११) वज्जि (वज्जि) (४) मलय
(११) मोली (मल्ल) (५) मालव
(१३) कासी (काशी) (६) अच्छ
(१४) कोशल (७) वच्छ (वत्स) (१५) अवाह (८) कोच्छ (कच्छ ?) (१६) सम्भूत्तर (सुम्होत्तर?)
उपर्युक्त सूचियों में अंग, मगध, वत्स, वज्जि, काशी तथा कोशल के नाम समान हैं। सम्भवतः अंगुत्तर सूची का अवन्ती ही भगवती सूत्र का मालव है तथा' मल्ल सम्भवतः मोली शब्द का ही अपभ्रंश है। इनके अतिरिक्त भगवती में जो नाम आये हैं वे नये हैं और उनसे पता चलता है कि जैन लेखकों को सुदूरपूर्व तथा सुदूर दक्षिण भारत की जानकारी थी। भगवती सूची का विस्तृत क्षेत्र होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सूची अंगुत्तर निकाय के बाद की है। अतः जनक वंश के के पश्चात् भारत को राजनीतिक स्थिति जानने के लिए हम बौद्ध सूची को ही सही और प्रामाणिक मानेगें।
बुद्धकालीन महाजनपदों एवं गणतन्त्रीय राज्यों के विषय में अणे ने लिखा है कि पालिग्रन्थों से सूचना मिलती है कि ई० पूर्व छठी शताब्दी में कोशल के पूर्व में, हिमालय और गंगा के मध्य में शाक्य, बुली, कलाम, भग्ग, कोलिय, पावा के मल्ल, कुशीनगर के मल्ल, मोरिय तथा लिच्छवी गणतन्त्र राज्य उपस्थित थे।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि बुद्धकालीन महाजनपदों एवं गणतन्त्रों में मल्लराष्ट्र एक प्रमुख, महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली गणतन्त्र के रूप में उभरकर सामने आ चुका था ।
१. भगवती सूत्र-परिशिष्ट २, २२५, जैनभवन, पी० २५, कलाकार स्ट्रीट
कलकत्ता ७, १९८०। २. अणे, माधवश्रीहरि : ग्लिम्प्सेज आव वैशाली, वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ,
वैशाली पृ० ३४-३८ ।
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