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मल्लराष्ट्र : ३३
भूमि की तालिका में मल्लराज्य का उल्लेख है । अश्वमेध पर्व से महाभारत कालीन मल्ल राज्य की भौगोलिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के पूर्व भोमसेन ने जिन राज्यों का दिग्विजय किया था उसमें अयोध्या के पूर्व में स्थित गोपालक एवं मल्ल राज्य भा थे । महाभारत के दिग्विजय पर्व में स्पष्ट उल्लिखित है कि मल्लराष्ट्र दो भागों में विभक्त था—
१. मुख्य मल्ल
२. दक्षिणी मल्ल
कृष्णकालीन उत्तरापथ के मानचित्र से स्पष्ट है कि यह देश गण्डक के दोनों ओर के क्षेत्र में फैला हुआ था ।
पौराणिक साहित्य में मल्लराष्ट्र सम्बन्धी विवरण के सन्दर्भ में डा० राजबली पाण्डेय का अभिमत है कि पुराणों में मगध साम्राज्य की राजवंशावलियों के अतिरिक्त कोई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती है । इनमें सरयू और बड़ी गण्डक के मध्य मल्लराष्ट्र का उल्लेख मात्र है | चन्द्रकेतु के वंशजों (मल्लों) ने कुशावती और शरावती को पहले ही अपने अधीन कर लिया था । इधर उन्होंने पश्चिमी कारूपथ (बस्ती) के गोपालक (गोपालपुर ) पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया । प्रारम्भिक
१. अश्मकाः पाण्डुराष्ट्राश्च गोपराष्ट्राः करीतयः ।
अधिराज्य कुशाद्याश्च
मल्लराष्ट्र ं च केवलम् ॥४४॥
'चक्राश्चक्रातयः शकाः ।
वारवास्यायवाहारच विदेहा मगधाः स्वक्षा मलजा विजयास्तथा ॥ ४५ ॥ अङ्गा वङ्गाः कलिङ्गाश्च यकृल्लोमान एव च ।
मल्लाः सुदेष्णाः प्रह्लादा माहिकाः शशिकास्तथा ॥४६॥
[ महाभारत, भीष्म पर्व, जम्बूखण्डविनिमणिपर्व: श्लोक सं० ४४, ४५, ४६ गीता प्रेस, गोरखपुर,
२. ततो गोपलकां च सोत्तरानपि कोसलान् । मल्लानामधिपं चैव पार्थिवं चाजयत् प्रभुः ॥३॥ ततो दक्षिणमल्लांश्च भोगवन्तं च पर्वतम् । तरसैवाजयद् भीमो नातितीव्रेण कर्मणा ॥ १२॥ [ महाभारत, सभापर्व, दिग्विजय पर्व, श्लोक सं० ३, १२,
गीता प्रेस, गोरखपुर
३. डा० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास, पृ० ५८ ।
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