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३२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा एक विमर्श
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मल्ल भूमि पर चन्द्रकान्ता नाम से विख्यात स्वर्ग की अमरावती नगरी के समान नगरी बसाई गई ।
भरत एवं चन्द्रकान्त नगरी के विषय में श्रीमद् वाल्मीकीय रामायण में एक और उल्लेख प्राप्त होता है कि राजकुमार चन्द्रकान्त के राज्याभिषेक के बाद भरत ने उनके सहायतार्थं चन्द्रकान्त नगरी में एक वर्ष से कुछ अधिक काल तक वास किया था, जब चन्द्रकेतु का राज्य दृढ़ हो गया था तो वे पुनः अयोध्या आकर श्रीराम के चरणों को सेवा करने लगे ।
इसी तथ्य का डा० राजबली पाण्डेय ने इन शब्दों में उल्लेख किया है - वाल्मीकीय रामायण से ज्ञात होता है कि कारुपथ के पूर्वोत्तर भाग को जहाँ चन्द्रकेतु की राजधानी चन्द्रकान्ता बसाई गई थी कालान्तर में मल्लभूमि कहा गया | चन्द्रकेतु महाबली थे, मल्लयुद्ध में निपुण थे अतः उन्हें मल्ल उपाधि से विभूषित किया गया है । निस्सन्देह मल्लभूमि या मल्लराष्ट्र के वे ही संस्थापक थे । क्षत्रिय मल्लजाति के वे ही पूर्वज थे । भारतीय इतिहास में एक ही मल्लभूमि या मल्लराष्ट्र है जो गांरखपुर देवरिया जनपद में है ।
महाभारत में मल्लों के अनेक सन्दर्भ प्राप्त होते हैं । अज्ञातवासस्थलों के सन्दर्भ में अर्जुन द्वारा गिनाये गये देशों में मल्लराज्य सम्मिलित था । धृतराष्ट्र-संजय संवाद में तत्कालीन भारत के राज्यों के वर्णन में मल्लराज्य का उल्लेख आया है । भीष्मपर्व के छठवें अध्याय में भी आर्य
चन्द्रकेतोश्च मल्लस्य मल्लभूम्यां निवेशिता । चन्द्रकान्तेति विख्याता दिव्या स्वर्गपुरी यथा ॥९॥
९. वही, वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ० १०२ / ९
२. भरतोऽपि तथैवोष्य संवत्सरमतोऽधिकम् ।
अयोध्या पुनरागम्य रामपादावुपास्त सः ॥१४॥
३. डा० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का इतिहास, पृ० ५२-५३ गोरखपुर, १९६७ ई० ।
४. दशार्णा नवराष्ट्राश्च मल्लाः शाल्वा युगन्धराः ।
कुन्तिराष्ट्रं च विपुलं सुराष्ट्रावन्तयस्तया ॥१३॥
[महाभारत, विराट पर्व - पाण्डवप्रवेशपर्व, प्रथमोऽध्यायः श्लोक सं० १३
गीताप्रेस गोरखपुर
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