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तृतीय अध्याय
मल्लराष्ट्र उत्तरी मल्लराष्ट्र बुद्धकाल में मध्य देश में स्थित १६ महाजनपदों में से एक था जिसको राजधानी पावा थी। अतः पावा पर विचार करने के पूर्व मल्लराजवंश एवं राष्ट्र का अध्ययन आवश्यक है। इस क्रम में हम सर्वप्रथम मल्ल शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करेंगे। व्युत्पत्ति ___ मल्ल शब्द की व्युत्पत्ति अभिधान राजेन्द्र' में इस प्रकार दी गई है-मल्लते धारयति बलमिति (मल्ल + अच् ) बाहुयोधौ इत्यमरभरती। माल इति भाषा । संस्कृत-हिन्दी कोश के अनुसार मल्ल से अच् प्रत्यय होकर मल्ल बनता है, जिसका अर्थ हृष्ट-पुष्ट, बलशाली, व्यायामशील है।
विभिन्न ग्रंथों में मल्लशब्द का अर्थ स्पष्ट किया गया है । 'पाणिनि अष्टाध्यायी'3 में मल्ल शब्द का अर्थ 'सन्निमुष्ठौ' सूत्र से 'मल्ल को मुष्ठियों की पकड़' (अहो मल्लस्य संग्राह ) बताया गया है ।
पाणिनीय धातुपाठ समीक्षा में मल्ल का अर्थ बाहु-योद्धा माना गया है। 'भगवतीसूत्र में इसका अर्थ बलधारण करने वाला कहा गया है-मल्ल ( सक०) धारणे । 'पातंजल महाभाष्य में मल्ल और मुष्टिक
१. अभिधान राजेन्द्र, सं० विजयराजेन्द्र सूरि, षष्ठम भाग, पृ० १५७, रतलाम,
म०प्र० १९१३ । २. आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ०७८१, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली,१९६३ । ३. अष्टाध्यायी, पाणिनि, सं० अग्रवाल, वी० एस०, पृ० १६२, मोतीलाल
बनारसीदास, बनारस । ४. धातुपाठ समीक्षा पाणिनि, पृ० ३५५, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,
वाराणसी, १९८४-८५ । ५. भगवती सूत्र ९/३३, जैनभवन, पी० २५, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता ७,
१९८० । ६. महाभाष्य पातंजल, सं० अभ्यंकर, एम० एम० के० वी०, खण्ड ३/३/३६/
१४८, भाण्डारकर ओरिएण्टल इंस्टीच्यूट पूना, ४, १९२७ ।
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