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१२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श लिखा है, इतिहास में हजारीबाग मानभूमि स्थित, मल्लजनपद एवं उसकी राजधानी पावा का कोई पता नहीं चलता है। सम्भवतः राजगृह, नालन्दा स्थित पावा को ही मध्यमा पावा सिद्ध करने के लिए इस पावा की परिकल्पना कर ली गई है। वास्तव में इतिहास प्रसिद्ध पावा तो एक ही थी जो महावीर को अपने क्रोड में रखकर धन्य हुई है। ___ इस प्रकार स्पष्टतः मल्लक्षत्रियों की राजधानी ही मध्यमा पावा प्रतीत होती है।
इसके बाद पावा-विषयक विवरण के लिए जैनसाहित्य को श्वेताम्बर और दिगम्बर साहित्य में वर्गीकृत कर सर्वप्रथम श्वेताम्बर साहित्य में उपलब्ध विवरण को प्रस्तुत किया जा रहा है
कल्पसूत्र में उपलब्ध विवरण सम्भवतः उत्तरवर्ती जैन साहित्य जैसे आगमिक चूणियों, टोकाओं एवं चरित्रविषयक अन्य ग्रन्थों का मूलस्रोत रहा है। कालान्तर में ब्राह्मणपुराणों में वर्णित तीर्थ माहात्म्यों के समान ही नाना प्रकार के माहात्म्य इसमें जोड़ दिये गये हैं :____कल्पसूत्र से सम्बन्धित विवरण अध्याय के आरम्भ में दे चुके हैं । आवश्यकचूर्णि' एवं कल्पसूत्रवृत्ति में पावा को पावामज्झिमा एवं मज्झिमा नगरी कहा गया है। इसके अनुसार महावीर ने ऋजुबालुका नदी के तट पर वैशाख शुक्ल दशमी को केवल ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन मज्झिमापावा में पधार कर महासेन वन में तीर्थप्रवर्तन किया था। वहाँ उस समय सोमिल ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। महावीर का द्वितीय समवसरण वहीं पर हुआ था । उसी स्थली पर उन्होंने पहली देशना दी थी। यहीं यज्ञ में आये हुए इन्द्रभूति, गौतम आदि ग्यारह प्रकाण्ड विद्वान् ब्राह्मणों को उन्होंने गणधर के रूप में दीक्षित किया था। तित्थोगालिय' के अनुसार यहों महापद्म (भावी तीर्थंकर) का समवसरण होगा और वे ग्यारह गणधरों को दीक्षा देंगे।
आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में महावीर का निर्वाण-वृत्तान्त पुराण शैली में वर्णित किया है। महावीर विहार करते १. आवश्यकचूणि भाग १, पृ० ३२२, २४, ऋषभदेव केशरीमल संस्था रतलाम,
१९२८-२९ २. डॉ० मेहता, मोहनलाल प्राकृत प्रापर नेम्स भाग १, पृ० ४५१ ३. कन्हैयालाल, मणिकलाल मुन्शी, गुजरात एण्ड इट्स लिटरेचर, पृ० ६२-७९ ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-हेमचन्द्र, १२/४४०
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