Book Title: Mahasati Dwaya Smruti Granth
Author(s): Chandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
Publisher: Smruti Prakashan Samiti Madras

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Page 9
________________ भी नारी याकिनी महत्तरा को ही है। यदि याकिनी महत्तरा नहीं होती तो कितना अनर्थ होता, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यहाँ एक बात का और उल्लेख करना आवश्यक प्रतीत होता है। वह यह कि जब जैन धर्म में समानता की बात आती है तो यह उल्लेख भी मिलता है कि पुत्रियाँ भी अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की अधिकारिणी है। इस सम्बन्ध में आदिपुराण का उल्लेख दृष्टव्य है : - पुत्रयश्च सवि भागाहा समं समाशके: पर्व ३८/१५४ अर्थात्, पुत्रों की भांति पुत्रियाँ भी सम्पत्ति की बराबर-बराबर भाग की अधिकारिणी है। हमारे देश के ऋषि मुनियों ने नारी की महत्ता को ही ध्यान में रखकर कहा - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता। जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता रमण करते हैं। या यो कह सकते है कि जिस घर में नारी की पूजा होती है अर्थात् सम्मान दिया जाता है वहाँ सुख, समृद्धि और शांति रहती है। ये तो नारी की महत्ता को प्रतिपादित करने वाले कुछ उदाहरण है, जो प्रतीक स्वरूप हैं, यदि हम इतिहास उठकर देखें तो पाते हैं कि नारी प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है और वह कभी भी पुरुष से पीछे नहीं है। साधना के क्षेत्र में भगवान श्री ऋषभदेव से लेकर आज तक संख्यात्मक दृष्टि से साध्वियाँ अधिक हई है और साधना की दृष्टि से भी वे पीछे नहीं रही है। इसी प्रकार श्राविकायें भी श्रावकों से आगे निकली है। जिस प्रकार साधना के क्षेत्र में नारी ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं, उसी प्रकार नारी अन्य क्षेत्रों में भी पीछे नहीं रही है। राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, सेवा, आर्थिक, क्रीडा आदि समस्त क्षेत्रों में जब भी नारी को कार्य करने का अवसर मिला है, उसने अपने आपको पुरुष से श्रेष्ठ ही सिद्ध किया है। यहाँ अपने कथन की पुष्टि में कोई उदाहरण देना आवश्यक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि इन क्षेत्रों की विश्व विख्यात नारियों को प्रायः सभी अच्छी प्रकार जानते हैं। परम श्रद्धेया सद्दादगुरुवर्याश्री अध्यात्मयोगिनी महासती श्री कानकुवंरजी म. सा. एवं परम पूजनीया सद्गुरुव-श्री कुशलप्रवचनकर्वी, परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंरजी म. सा. दोनों ने ही अपनी साधना की सौरभ से राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु को सुरभित किया। दोनों ने ही स्वअर्जित ज्ञान को मुक्तहस्त से जन-जन में बांटा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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