Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan Author(s): Pannalal Sahityacharya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ तृतीयाध्याय तीर्थकर तृतीयाध्याय में १. सिद्धान्त, २. वर्णन और ३, प्रकृति-निरूपण ये सीन स्तम्भ रखे गये हैं । प्रथम स्तम्भ में तीर्थकर वैसे हुआ जाता है इसका दिग्दर्शन कराने के लिए दर्शन-विशुद्धि आदि सोलह भावनाओं का वर्णन किया गया है। इस समय 'वत्त्वार्थसूत्र' आदि ग्रन्थों में जिन दर्शन-विशुद्धि आदि सोलह भावनाओं का वर्णन उपलब्ध है, उनका मूल स्रोत क्या है यह बताने के लिए षट्खण्डागम के सूत्रों की छानबीन की गयी है तथा उनके उद्धरण देकर दोनों की तुलना को गयी है ! इस सबका वर्णन तीर्थकर की पृष्ठभूमि शीर्षक से किया है। जैन सिद्धान्त और जैनाचार भगवान् धर्मनाथ ने सर्वज्ञ होने के बाद जो तस्योपदेश दिया था उसका कुछ विस्तार से वर्णन किया गया है। जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं । इन सभी का अच्छा वर्णन इस सन्दर्भ में किया गया है। जीवन्धरचम्पू के भी विभिन्न प्रकरणों में जैनाचार-थावक के कर्वव्यों का अच्छा निदर्शन प्राप्त है अतः उसका भी सप्रमाण संकलन किया गया है। चार्वाक-दहन धर्मशर्माभ्युदय के चतुर्थ सर्ग में चार्वाक दर्शन का पूर्वपक्ष और उत्तर-पक्ष के द्वारा समीचीन दिग्दर्शन कराया गया है। काच्य में दर्शन जैसा नीरस विषय भी सरस हो गया है यह महाकवि की काव्यप्रतिमा का ही महत्त्व मानना चाहिए। चार्वाक-दर्शन आत्मा का अस्तित्व स्वीकृत नहीं करता है अतः उसमें परलोक सापक तपश्चरणादि क्रियाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया गया है परन्तु कवि ने सुयुक्तियों के द्वारा आत्मा का अस्तित्व सिद्ध कर तपश्चरणादि क्रियाओं को सार्थकता सिद्ध को है। देश और नगर वर्णन द्वितीय स्तम्भ में देश, नगर, नारी-सौन्दर्य, नेपथ्यरचना, राजा, देवसेना, सुमेरु पर्वत, क्षीरसमुद्र तथा विन्ध्याचल का वर्णन पृथक्-पृथक् लेखों के द्वारा किया मया है । धर्मशर्माभ्युदय और जीवन्धरचम्प इन दोनों ही अन्यों में देश और नगर का वर्णन करने के लिए कवि ने जिस अलंकार-विच्छित्ति का दर्शन कराया है वह अन्यत्र दुर्लभ है । इस प्रसंग में अनेक उद्धरण देकर उपर्युक्त तथ्य को सिद्ध किया है। नारी-सौन्दर्य नारी प्रारम्भ से ही संसार के आकर्षण का केन्द्र रही है, अत: कवियों ने, कलाकारों ने तथा चित्रकारों ने उसे अपनी रचना का लक्ष्य बनाया है। महाकविPage Navigation
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