Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 179
________________ (१२६) - और ७- खडखड इस तरह नाम है। इन सातों से पूर्व के समान प्रत्येक प्रतर में आठ-आठ पंक्तियां निकलती है । (२०८-२०६) स्युः षोडश पंच दशावासा दिक्षु विदिक्षु च । शतं सपादं प्रथम प्रतरे सर्व संख्यया ॥२१०॥ प्रत्येक दिशा में सोलह-सोलह और प्रत्येक विदिशा में पंद्रह-पंद्रह नरकावास पहले प्रतर में हैं । इस तरह इसमें सब मिलाकर एक सौ पच्चीस हैं । (२१०) द्वितीयादिषु चैकैक हीनां अष्टापि पंक्तयः । ततो द्वितीय प्रतरे सर्वे सप्तदशं शतम् ॥२११॥ . और अन्य इसके बाद के प्रतरों में आठ पंक्तियों में एक-एक कम होता है इस गिनती से गिनते, दूसरे प्रतर में एक सौ सत्तर नरकवास होते हैं । (२११) नवोत्तरं तृतीये तत् तुर्ये एकोत्तरं शतम् । पंचमे च त्रिनवतिः पंचाशीतिश्च षष्टके ॥२१२॥ सर्वे च पंक्तिनरकाः सप्तमे सप्तसप्ततिः । सप्ताधिका सप्तशती सर्वेऽस्यां पंक्तिसंश्रयाः ॥२१३॥ इसी गिनती से तीसरे प्रतर में एक सौ नौ, चौथे प्रतर में एक सौ एक, पांचवे में तिरानवे, छठे में पचासी और सातवें में सतहत्तर नरकावास होते हैं । इस तरह सातों प्रतर के मिलाकर सात सौ सात पंक्ति गत नरकावास होते हैं । (२१२-२१३) सहस्रा नव नवतिः नव लक्षास्तथा परे । द्विशती सत्रिनवतिः अस्यां पुष्पावकीर्णकाः ॥२१४॥ और वहां अन्य पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं उनकी कुल संख्या नौ लाख निन्यानवें हजार दो सौ तिरानवे है । (२१४) . एवं च सर्वे नरकावासाः पंकप्रभाक्षितौ । • निर्दिष्टा दश लक्षाणि साक्षात्कृतचराचरैः ॥२१॥ अतः कुल मिलाकर पंक प्रभा पृथ्वी में दस लाख नरकावास श्री जिनेश्वर भगवान के वचनानुसार कहे हैं । (२१५) इत आरभ्य नो पीडा परमाधांर्मिकोद्भवाः । ततोऽस्यां द्विविधा एव क्षेत्रजाश्च मिथः कृताः ॥२१६॥

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