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(१६३) छोडकर चौड़ाई में दस योजन और लम्बाई में वैताढय समान ही एक-एक मेखला है । (५४-५५)
पृथुस्त्रिशद्योजनानि वैताढयः स्यादतः परम् । प्रति मेखलयेकैका मानतोमेखला समा ॥५६॥ शोभता वन खण्डेन पद्मवेदिकयापि च । वर्तते खेचर श्रेणी रनबद्धमहीतला ॥५७॥
यहां आगे वैताढय की चौडाई जो मूल में पचास योजन थी वह घटकर तीस योजन रहती है। दोनों मेखला पर मेखला के ही माप की खेचरो श्रेणियां आयी हैं। दोनों श्रेणि में बाग और पद्मवेदिका शोभती है । इसके भूमितल रत्न जड़ित होते हैं । (५६-५७)
स्युस्तत्र दक्षिण श्रेणौ वृतानि विषयैः निजैः । महापुराणि पंचाशत् परस्यां षष्टिरेव च ॥८॥
इसमें से दक्षिण श्रेणि में बड़े पचास नगर है और उत्तर श्रेणि में ऐसे साठ नगर हैं । इन सब नगरों के आस-पास इनके अपने देश आए हैं । (५८)
दक्षिणस्यां पुरं मुख्यं भवेत् गगनवल्लभम् । - उदीच्यारथनूपुर चक्र वालाह्वयं भवेत् ॥५६॥
दक्षिण श्रेणी का मुख्य नगर 'गगनवल्लभ' नाम का है, और उत्तर श्रेणिका रथुनूपुर चक्रवाल नामक नगर है । (५६)
. अयं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्त्यभि प्रायः ॥ ऋषभ चरित्रादो तु दक्षिण श्रेण्यां रथनू. चक्रवालमुत्तर श्रेण्यां गगन वल्लभमुक्तम् ।। इति ।।
यह बात जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के अभिप्राय से कही है। श्री ऋषभ चरित्र आदि में तो इससे उलटा कहा है अर्थात् दक्षिण श्रेणि में रथुनूपुर चक्रवाल और उत्तर रेणि में गगनवल्लभ गनर है।'
मुख्यत्वं त्वनयो यं स्वस्व श्रेण्यधिराजयोः । राजधानीरूपतया महासमृद्धिशालिनोः ॥६०॥
ये दोनों मुख नगर इसलिए कहलाते हैं, कि ये अपनी-अपनी श्रेणि के महासमृद्धशाली राजाओं की राजधानी है । (६०)