Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 556
________________ (५०३) रोहिणी नक्षत्र गाड़ी.के उलटे आकार का है, मृगशिर-मृग-हरण के मस्तक सद्दश है, आद्रा खून के बिन्दु समान है, और पुनर्वसू का तुला-तराजू के समान आकार है। (६३७) वर्धमानकसंस्थानः पुष्योऽश्लेषाकृतिः पुनः ।. पाताकाया इव मघाः प्राकाराकारचारवः ॥६३८॥ पुष्प नक्षत्र स्वस्तिक समान है, अश्लेषा पताका-ध्वजा का आकार है, और मघा किले के आकार समान है । (६३८) पूर्वोत्तरे फाल्गुन्यावर्धपल्यंक संस्थिते । अत्राप्येतद्वययोगे पूर्णा पंल्यकंसंस्थितेः ॥६३६॥ पूर्व और उत्तरा फाल्गुनी दोनों का आधा-आधा पलंग का आकार है, अतः दोनों को जोड़ दिया जाय तो पूरा पलंग का आकार हो जाता है । (६३६) हस्तोहस्ताकृतिश्चित्रा संस्थानतो भवेद्यथा । मुखमण्डनरैपुष्पं स्वातिः कीलकंसस्थिताः ॥६४०॥ हस्त नक्षत्र हाथ के आकार का है, चित्रा मुख के मंडन भूत स्वर्ण के पुष्प समान है, और स्वाति कील के आकार समान है । (६४०) ... विशाखा पशुदामाभा राधैकावलि संस्थिता ।। गजदन्ताकृतिः ज्येष्ठा मूलं वृश्चिकपुच्छवत् ॥६४१॥ .: विशाखा नक्षत्र पशु दामन समान है, अनुराधा एकवली हार के सद्दश है, ज्येष्ठा हाथी के दांत समान है, और मूल-वृश्चिक के पुच्छ समान है । (६४१) ____गजविक्रम संस्थानाः पूर्वाषाढाः प्रकीर्तिताः । ... आषाढाश्चोत्तराः सिंहोपवेशनवमा मताः ॥६४२॥ पूर्वाषाढा की हाथी के पैर समान आकृति है, और उत्तराषाढा की बैठे हुए सिंह के समान आकृति होती है । (६४२) लोके तु रत्नमालायाम :तुरग मुख सद्दक्षं योनिरूपं क्षुराभम् । शकट सममथैणस्योत्तमांगेन तुल्यम् ॥ मणि गृह शर चक्रनाभिशालोपमं भम् । शयनसद्दशमन्यच्चात्र पर्यंक रूपम् ॥६४३॥

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