Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 562
________________ (५०६) घनिष्टा अर्थात् श्रविष्टा इसकी पूर्णिमा श्राविष्टी अथवा श्रावणी कहलाती है । इसी तरह दूसरी पूर्णिमायें भी समझ लेना । (६७४) यदा चोपकुलाख्यानि समापयन्ति पूर्णिमाः । पाश्चात्यानि तदैतेभ्यः रमणादीन्यनुक्रमात् ॥६७५॥ जब उपकुल नक्षत्र पूर्णिमा को समाप्त करता है, तब उनसे उपकुल नक्षत्रों से पूर्व के श्रवणादि नक्षत्र अनुक्रम से अमावस्या को समाप्त करता है । (६७५) राकास्त्विमाः समाप्यते कुलोप कुल भैः यदा । तदोप कुलापाश्चात्यैः अभिजित्यप्रमुखै रिह ॥६७६॥ पूर्णिमा को जब कुलोपकुलं नक्षत्र समाप्त करता है, तब उपकुल से बाद अभिजित आदि नक्षत्र अमावस्या को समाप्त करता है । (६७६) यद्यप्यभिजिता क्वापि राका पूर्तिः न दृश्यते । रुतियोगात्तगात्तथाप्येतत् राका पूरकमुच्यते ॥६७७॥ जो कि अभिजित् नक्षत्र पूर्णिमा समाप्त करते कही देखा नहीं है, फिर भी केवल श्रुतियोग से अर्थात सुनने मात्र से इसको पूर्णिमा का पूरक कहा गया है । (६७७) . वस्मिन् ऋक्षे पूर्णिमा स्यात्ततः पंचदशेऽथवा । . .चतुर्दशेऽमावास्या स्यात् गण ने प्राति लोम्यतः ॥६७८॥ - जिस नक्षत्र में पूर्णिमा होती है, इससे प्रतिलोम गिनते पंद्रहवें अथवा चौदहवें नक्षत्र में अमावस्या होती है । (६७८) तद्यथा - . . माघे राका मघोपेताऽमावस्या च सवासवा । सवा सवायां राकाययं श्रावणेऽमा मधान्विता ॥६७६॥ एवमन्यत्रापि भाव्यम्। - इति अमावस्या पूर्णिमायोग कीर्तिनम् ॥१४॥ . जैसे कि कहा है कि - महा महीने की पूर्णिमा को मघा का योग हो, और अमावस्या को बासव का योग होता है, उस समय श्रावण महीने में पूर्णिमा को बासव का योग होता है, और अमावस्या को मघा का योग होता है । (६७६) इसी

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