Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 558
________________ (५०५) शेष पंद्रह नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ में तीस मुहूर्त तक योग रहता है । ऐसा श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (६४६) प्रयोजनं तु एषाम :मृते साधौ पंचदसमुहूत्तै नैव पुत्रकः । . एकः त्रिंशन्मुहूर्तस्तु क्षेप्यः शेषैस्तु भैरूभौ ॥६५०॥ यहां संयोग काल कहने का प्रयोजन क्या है ? उसे कहते हैं - यदि पंद्रह मुहूर्त संयोग काल हो ऐसे नक्षत्र में कोई साधु मुनिराज कालधर्म प्राप्त करे तो एक भी पुतला नहीं करना चाहिए । तीस मुहूर्त संयोग काल हो ऐसे नक्षत्र में साधु काल करे तो एक पुतला करना । शेष के किसी भी नक्षत्र में साधु काल करे तो पुतला करना चाहिए । (६५०) . .. एतार्थसार्ध समक्षेत्रा याहुः यथाक्रमम् । अथैषां रविणा योगो यावत्कालं तदुच्यते ॥६५१॥ ये तीन प्रकार के नक्षत्र अनुक्रम से अर्धक्षेत्री, सार्धक्षेत्री और समक्षेत्री जानना। अब सूर्य के साथ में संयोग काल के मान विषय में कहते हैं । (६५१) ..मुहूत्तैरेकविंशत्याढियानि यत्रिदिवानि षट् । अर्ध क्षेत्राणामुडूनां योगो विवस्वता सह ॥६५२॥ . सार्थ क्षेत्राणां तु भानां योगो विवस्वता सह । त्रिभि मुहूत्तैर्युक्तानि रात्रिदिवानि विंशतिः ॥६५३॥ समक्षेत्राणां मुडूनां अहोरात्रांस्त्रयो दशः । ... मुहूर्तश्च द्वादशभिरधिकान् रविसंगतिः ॥६५४॥ ‘रात्रिंदिवानि चत्वारि षण्मुहूर्ताधिकानि च । - नक्षत्रमभिजित् चारं चरत्युष्णरूचा सह ॥६५५॥ - ये तीन प्रकार के नक्षत्र कहे हैं उसमें से अर्ध क्षेत्री नक्षत्रों का सूर्य के साथ में योग छः अहोरात्रि और २१ मुहूर्त का होता है, सार्धक्षेत्री नक्षत्रों का योग २० अहोरात और तीन मुहूर्त का होता है, जबकि समक्षेत्री नक्षत्रों का योग १३ अहो रात्र और १२ मुहूर्त का होता है, और अभिजित नक्षत्र का योग ४ अहोरात और छः मुहूर्त का होता है । (६५२-६५५),

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