Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

Previous | Next

Page 515
________________ (४६२) . तद्वैपरीत्या द्वाषष्टया साग्रयातैर्विधुस्तु तत् । साष्टषष्टिः सप्तदशशती तानि युगे ततः ॥३६८॥ एक चन्द्रापेक्षयार्धमण्डलानि भवन्ति हि । तावन्त्येव च पूर्णानि द्वयोरिन्द्वोरपेक्षया ॥३६६॥ सूर्य चन्द्र से कुछ छोटा विमानवाला है। वैसे ही शीघ्र गति वाला होने से वह प्रत्येक मंडल साठ मुहूर्त (दो अहो रात) में पूर्ण करता है । परन्तु चन्द्रमा तो उससे मन्द गति वाला होने से बासठ मुहूर्त कुछ अधिक समय में पूर्ण करता है । उसके १७६८ युग होते हैं । उतने ही एक चन्द्रमा की अपेक्षा से अर्धमण्डल होता है। दे चंद्रमा की अपेक्षा से उतने ही सम्पूर्ण मंडल होते हैं । (३६७-३६६) ततश्च-आष्टषष्टि सप्तदशशतमानार्धमण्डलैः। __युगान्त विभीरात्रिंदिवानां यदिलम्यते॥३७॥ अष्टादशशती त्रिशा तदा ननु किमाप्यते । . . द्वाभ्यामर्धमण्डलाभ्यामिति राशित्रयं लीखेत् ॥३७१॥ अन्त्येन राशिना राशौ मध्यमे गुणिते सति । जातः शतानि षट् त्रिशत् सषष्टीन्येष भज्यते ॥३७२॥ साष्टषष्टि सप्तदशशतात्मकाद्यराशिना । अहोरात्रद्वयं लब्धं चतुर्विशं शतं स्थितम् ॥३७३॥ अहो रात्रस्य च त्रिंशन्मुहूर्ता इति ताडितम् । त्रिंशताभूत् विंशतीयुक् सप्तत्रिंशच्छतात्मकम् ॥३७४॥ अस्मिन् साष्टषष्टिसप्तदशशतया हते द्वयम् । लब्धं मुहूर्तयोः शेषं शतं चतुरशीतियुक् ॥३७५॥ भागा प्राप्ताऽपवयेते अष्टभिः भाज्यभाजको । . त्रयोविंशतिरेकोऽन्यश्चैकविशं शतद्वयम् ॥३७६॥ इससे युगान्तर के १७६८ अर्ध मंडल में जो १८३० अहो रात्रि होती है, तो दो अर्ध मंडल में कितने अहोरात होती है, इस तरह त्रिराशी लेकर हिसाब करना चाहिए। उसे लिखने की रीति :- १७६८ : १३८० : २ : इस तरह लिखकर १८३० को दो से गुणा करते ३६६० आते हैं और १७६८ से भाग देते दो अहो रात्रि आती है और १२४ बढते हैं । इन १२४ को एक अहो रात के तीस मुहूर्त में गिनते ३७२० आते है इसे १७६८ से भाग देते, दो मुहूर्त आते हैं । उसे ३५३६ निकाल देने पर

Loading...

Page Navigation
1 ... 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572