Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 514
________________ . (४६१) सहस्रेस्त्रयोदशभिः सतत्वैः सप्तभिः शतैः । छिन्नस्य योनस्यांशशतांश्च सप्तसप्ततिः ॥३५॥ चतुश्चत्वारिंशदाढया मुहूर्तगतिरेषिका । जिज्ञास्यतेऽस्याश्चेत बीजं श्रूयतां तर्हि भावना ॥३६०॥ सर्व अभ्यन्तर मंडल में संक्रान्त होते दोनों चन्द्रमाओं की भी गति एक मुहूर्त में पांच हजार और तिहत्तर पूर्ण योजन तथा ७७४४/१३७२५ योजन होती है। इनकी गति किस तरह जानना तो उसकी भावना इस प्रकार है । (३५८ से ३६०) इहै कै कोऽप्यमृतांशुरे कै कमर्धमण्डलम् । एकनाहोरात्रेणैक मुहूर्ताधिक्यशालिना ॥३६१॥ शताभ्यामेक विंशाभ्यां द्वाभ्यां छिन्नस्य निश्चितम् । मुहूर्तस्यैका दशभिः साधैर्भागैः प्रपूरयेत् ॥३६२॥ युग्मं ॥ एवं शशी द्वितीयोऽपि द्वितीयमर्धमण्डलम् ।। कालेनैतावतैव द्राक्. भ्रमणेन प्रपूरयेत ॥३६३॥ सम्पूर्णस्य मण्डलस्य पूर्तिकाले यदेष्यते । अहोरात्रद्वयं द्वाभ्यां मुहूर्ताभ्यां युतं तदा ॥३६४॥ एक विंशत्यधिकाभ्यां शताभ्यां चूर्णितस्य च । त्रयोविशतिरंशानां मुहूर्तस्य विनिर्दिशेत् ॥३६५॥ युग्मं ॥ - एक चन्द्रमा एक अर्धमंडल का एक अहोरात्रि होती है, एक मूहूर्त और ११/२२१ मुहूर्त काल में (इतने समय में) पूरा करता है । दूसरा चन्द्रमा भी दूसरे अर्ध मंडल को उतने ही समय में पूर्ण करता है । अतः एक सम्पूर्ण मंडल को पूर्ण करने का समय दो अहो रात दो ३२/२२१ मुहूर्त लगता है। मण्डले पूर्ति कालेऽत्र प्रत्ययः केन चेदिति । त्रैराशिकेन तदपि श्रुयतां यदि कौतुकम् ॥३६६॥ एक मंडल पूर्ण (पार) करने में इतना समय लगता है । उसका क्या सबूत है ? इस प्रकार किसी को शंका होती हो तो उसका समाधान त्रिराशि की गिनती से होती है । उसे जानने की इच्छा हो तो सुनो । (३६६) भानुः लघु विमानत्वाच्छीघ्रगामि तथापि च । षष्टया मुहूत्तैरेकैकं मण्डलं परिपूरयेत् ॥३६७॥

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