Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

Previous | Next

Page 545
________________ (४६२) . मध्यमीयमण्डलेषु यान्युक्तान्यष्ट तेषु च । बिना ज्येष्टां त्रिधा योगः सप्तानां राशिनां समम् ॥५६४॥ औत्तराहो दाक्षिणात्यो योगः प्रमर्दनामकः । आद्यो बहिश्चवरे चन्द्रे द्वितीयोन्तश्चरे स्वतः ॥५६५॥ मध्य के दूसरे सात मंडल तक के छः मंडलों में जो आठ नक्षत्र कहे हैं, उन आठ में से ज्येष्ठा को छोड़कर शेष सात रहे, उनका चन्द्रमा के साथ में संयोग तीन प्रकार से होता है । १- उत्तराभिमुख योग, २- दक्षिणाभिमुख योग और ३- प्रमर्द योग । (५६४-५६४) प्रमर्दो भवि मानानि भिन्त्वेन्दोः गच्छतो भवेत् । योगः प्रमर्द एवं स्याज्ज्येष्टाया: राशिना समम् ॥५६६॥ : उडून्याद्यानि षट् भेषु बाह्यमण्डलवर्तिषु ।' इन्दोर्दक्षिणदिक्स्थानि संयुज्यन्तेऽमुना समम् ॥५६७॥ चन्द्रमा बहिश्चर होता है, तब प्रथम उत्तराभिमुख योग होता है । यह जब अन्तश्चर होता है, तब दूसरा दक्षिणाभिमुख योग होता हैं और ये जब नक्षत्रों के विमानों को भेदन करके मध्य में से जाता है तब तीसरा प्रमर्द योग होता है । ज्येष्ठा का तो चन्द्र के साथ में प्रमर्द योग ही होता है (५६६-५६७) पूर्वात्तराषाढयोः तु बाह्यतारांव्यपेक्षया । याम्यायां शशिना योगः प्रज्ञप्तः परमर्षिभिः ॥५६८॥ द्वयोर्द्वयोस्तारयोस्तु चन्द्रे मध्येन गच्छति । भवेत् प्रमर्द योगोऽपि ततो योगऽनयोर्द्विधा ५६६॥ उदीच्यां दिशि योगस्तु संमवेन्नानयोर्भयोः । यदाभ्यां परतश्चारो कदापीन्दोन वर्तते ॥५७०॥ सर्व से बाहर के मंडल के आठ नक्षत्रों में से पहले छ: नक्षत्रों का चन्द्र साथ में योग जब दक्षिण में रहे होयं तब होता है । वह भी चन्द्र के साथ में योग बाहर के तारा की अपेक्षा से दक्षिण दिशा में कहा है, परन्तु दो-दो तारा के बीच से चन्द्र का पसार होता हो, तब प्रमर्द योग भी होता है । इस तरह पूर्व-उत्तरषाढा को चन्द्र के साथ में योग दो प्रकार का है । उत्तर दिशा में तो इनका चन्द्र योग संभव नहीं होता, क्योंकि किसी भी दिन चन्द्रमा की इन दोनों से उत्तर में तो गति ही नहीं होती। (५६८ से ५७०)

Loading...

Page Navigation
1 ... 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572