Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 551
________________ (४६८) रूप है, और अन्तिम राशि मुहूर्त रूप है, इसलिए दोनों को सवर्ण (एक समान) करने के लिए अन्तिम संख्या को २२१ से गुणा करने पर २२१ आयेंगे । (६०६) एकविंशा द्विशती स्यात् मध्यराशिरथैतया । हतः कोटिद्वयं लक्षा द्विचत्वारिंशदेव च ॥६०७॥ पंचषष्टिः सहस्राणि शतान्यष्ट भवन्त्यतः । पंच विंशसप्तशत त्रयोदश सहस्रकैः ॥६०८॥ एषां भागे हृते लब्धा मुहूर्तगतिरैन्दवी । भागात्मिका यथोक्ता च सा रवेरपि भाव्यते ॥६०६॥ कलापकं ॥ ... अब दो सौ इक्कीस को १०६८०० से गुणा करते तो २,४२,६५८,०० को . संख्या आती है, इसे १३७२५ द्वारा भाग देने पर पूर्वाक्त १७६८ अंश रूप चन्द की मुहूर्त गति आती है। सूर्य की भी यथोक्त अंशात्मक मुहूर्त गति इस तरह निकलती है । (६०७ से ६०६) पूर्वोक्तो मण्डलच्छेद राशिः षष्टया मुहूर्त्तकैः । ' यद्याप्यते मुहूर्तेन तदैकेन किमाप्यते ॥६१०॥ गुणितोऽन्त्येनेकैकेन मध्य राशिस्तथा स्थितः । अष्टादशशतीं त्रिंशां यच्छत्याद्येन भाजितः ॥६११॥ पूर्वोक्त मंडल छेद की संख्या यदि मुहूर्त में आये, तो एक मुहूर्त में क्या आता है ? तो प्रथम तीन राशि लिखे ६०, १०६८००, १ इसमें १०६८०० को ६० से भाग दे तो १८३० संख्या आती है, यह सूर्य अंशात्मक मुहूर्त गति है । (६१०६११) भ्रमण्डलपूर्तिकालमानं भवेत् सवर्णितम् । षष्टीयुक्ता नवशती सहस्राश्चैक विंशतिः ॥६१२॥ अब नक्षत्र की अंशात्मक मुहूर्त गति निकालने के लिए रीति कहते हैं - नक्षत्र मंडल के सम्पूर्ण कालमान को सवर्णित करते २१६६० संख्या आती है । (६१२) "उपपत्ति योजनात्मक गत्यवसरे दर्शितास्ति ॥" 'यह बात योजनात्मक मुहूर्त गति के समय में समझना है।'

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