Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 549
________________ (४६६) त्रिंशा विभागाः प्रत्येकं गुण्यन्ते त्रिंशतेति ते । जातं लक्षमेकमष्टानवत्या सहितं शतैः ॥५६३॥ एक अहोरात्रि के ३० मुहूर्त होते है, इन तीस के प्रत्येक के ३६६० अंशो की कल्पना करना उचित है, इसलिए ३६६० को ३० से गुणा करते १०६८०० अंश आता है । जो पूर्व में मंडल छेद का अन्तिम का मान कहा है । वह युक्त है। (५६२-५६३) एतस्मात् मण्डलछे दमानादेव प्रतीयते । . शंशाकभास्करोडूना गत्याधिक्यं यथोत्तरम ॥५६४॥ . . . . इस कारण मंडल छेद के इस मान से ही चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्रों की गति में उत्तरोत्तर अधिकत्व प्रतीत होता है । (५६४) तथाहि- ऐकैकेन मुहूर्तेन शशी गच्छति लीलया। प्रकान्त मण्डलपरिक्षेपांशानां यदा यदा ॥५६४॥ अष्टषष्टया समधिकैरधिकं सप्तभिः शतैः । सहस्रमेक मर्क स्तु मुहूर्तेनोपसर्पति ॥५६६॥ त्रिंशान्यष्टादश शतान्युडू नि संचरन्ति च । पंचत्रिशत्समधिकान्यष्टादशशतानि वै ॥५६७॥ विशेषकं ॥ जैसे कि चन्द्रमा चलता है, वह एक मुहूर्त में चलते हुए, घेराव के अंशो में से १७६८ अंश जितना चलता है, सूर्य एक मुहूर्त में १८३० अंश सद्दश चलता है और नक्षत्र १८३५ अंश प्रमाण में चलता है । (५६५ से ५६७) उक्तेन्दु भास्करोडूनां गतिः प्राक् योजनात्मिका। इयं त्वंशात्मिका चिन्त्यं पौनरूक्त्यं ततोऽत्र न ॥५६८॥ चन्द्र, सूर्य और नक्षत्रों की जो पहले मुहूर्त की गति कही है, वह योजन में कही है, और यह अभी कही है, वह अंश में कही है । इसलिए यहां पुनरुक्ति दोष नहीं गिनना । (५६८) विशेषस्त्वनयोर्गत्योः कश्चिन्नास्ति स्वरूपतः । प्रत्ययः कोऽत्र यद्येवं तत्रोपायो निशम्यताम् ॥५६६॥ यहां शंका करते हैं कि इन दोनों की गति में स्वरूप से कुछ भी अन्तर नहीं है । इसका क्या विश्वास है ? (५६६)

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