Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 541
________________ (४८८) सषष्टिर्नवशत्येवं सहस्राश्चैक विंशतिः । • अयं च राशिः परिधेः भाजकः प्रतिमण्डलम् ॥५३५॥ इसके बाद ५६ को भागा के साम्य (समानता) के लिए ३६७ से गुणा करना और उसमें ३०७ मिलाना अतः इक्कीस हजार नौ सौ साठ (२१६६०) संख्या आती है, यह संख्या प्रत्येक मंडल में परिधि की भाजक संख्या समझना चाहिए । (५३३-५३५) . तिस्रो लक्षाः पंचदश सहस्राणि तथोपरि । ... नवाशीतिः परिक्षेपः सर्वाभ्यन्तरमण्डले ॥५३६॥ राशिर्योजनारूपोऽयं भागात्मकेन राशिना । कथं विभाज्योऽसद्दश स्वरूपत्वादसौ ततः ॥५३७॥ तेनैबार्हति गुणनं गुणितो येन भाजकः । . ततः त्रिभिः शतैः सप्तषष्टयाढयैरेष गुण्यते ॥५३८॥ जाता एकादश कोटयः षटपंचाशच्च लक्षिकाः। सप्तत्रिंशत्सहस्राणि षट्शती च त्रिषष्टियुकं ॥५३६॥. सहस्रेकविंशत्या षष्ठयाढयैर्नविभिः शतैः । भागेऽस्य राशेः प्राणुक्ता मुहूर्तगतिराप्यते ॥५४०॥ इन सब अभ्यन्तर नक्षत्र मंडल की परिधि तीन लाख पंद्रह हजार नवासी योजन है, पूर्व भाजक ५६ ३०७/३६७ की संख्या के ३६७ द्वारा गुणा किया है । इसलिए यह ३१५०८६ योजन वाली भाज्य संख्या को भी ३६७ द्वारा गुणा करने पर ग्यारह करोड़ छप्पन लाख सैंतीस हजार छः सौ तिरसठ संख्या आती है, यह भाज्य संख्या है । उसे २१६६० से भाग देने पर ५२६५ १८२६२/२१६६० योजन आयेगा इससे पूर्व में ५१६-५२१ श्लोक में मुहूर्तगति कही है, वह मिल जायेगा । इस तरह से सर्वाभ्यन्तर मंडल में नक्षत्र की मुहूर्त गति समझना चाहिए। (५३६-५४०) तथा - योजनानां त्रिपंचाशच्छती सैकोनविंशतिः। ___ सहस्रैरेकाविंशत्या षष्ठयाढयैः नवभिःशतैः ॥५४१॥ . भक्तस्य योजनस्यांशसहस्राः षोडशोपरि । . सपंचषष्टिस्त्रिशती गतिः सर्वन्त्यमण्डले ॥५४२॥ तथा सर्व से बाहर के मंडल में नक्षत्र की मुहूर्त गति ५३१६ १६३६५/२१६६० योजन की होती है । (५४१-५४२)

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