Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 534
________________ (४८१) गोयम चंदस्य.णं ज्योतिसिदस्य ज्योति सरण्णे मियंके विमाणे कन्ता देवा कन्ताओ देवीओ । इत्यादि ॥" 'इति चन्द्र स्वरूप निरूपणम् ॥' . 'इस सम्बन्ध में पांचवां अंग श्री भगवती सूत्र में उल्लेख मिलता है - श्री गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं - हे भगवन् ! चन्द्रमा को ससी क्यों कहते हैं ? इसका भगवान उत्तर देते हैं - हे गौतम ! चन्द्र को ससी, सश्रीक इसके लिए कहने में आता है कि चन्द्र ज्योतिश्चक्र का इन्द्र है, ज्योतिश्चक्र का राजा है, इसके मृगांकित विमान में मनोहर देव तथा मनोहर देवियां रहती हैं, इत्यादि कारण से श्री शोभा को लेकर वह सश्रीक-ससी कहलाता है।' इस प्रकार से चन्द्र सर्व स्वरूप का कथन समाप्त । एवं संक्षेपतश्चन्द्र निरूपणं यथा कृतम् । तथैव वर्णयामोऽथ नक्षत्राणां निरूपणम् ॥४६४॥ यहां जैसे चन्द्रमा का संक्षेप में स्वरूप समझाया है, वैसे अब नक्षत्रों के विषय मेंभी संक्षेप में वर्णन करते हैं । (४६४) : आदौ संख्या मण्डलनां १ तेषां क्षेत्र प्ररूपणा २। एक ऋक्ष विमानानां, तथाऽन्तरं परस्परम् ३ ॥४६५॥ सुमेरोः मण्डलाबाधा4 विष्कम्भादि च मण्डले ५॥ मुहूर्त गति ६ आवेशः शशांक मण्डलैः सह ७ ॥४६६॥ दिग्योगो ८ देवताः ६ तारा संख्यो १० डूनां तथा कृतिः । सूर्येन्दुयोगाद्वामानं १२ कुलाद्या ख्यानि रूपणम् १३ ॥४६७॥ अमावस्या पूर्णिमानां नक्षत्र योग कीर्ति नम् १४ । प्रतिमासमहोरात्रसमापकानि तानि च १५ ॥४६८॥ एभिश्च पंचदशभिः द्वारैः पूर्गोपुरैरिव । गम्योडूपरिपारीति तामेव प्रथमं बुवे ॥४६६॥ जैसे एक नगर में प्रवेश, दरवाजे द्वारा हो सकता है । वैसे ही नक्षत्रों की परिपाटी अमुक पंद्रह द्वारों द्वारा जान सकते हैं। वे पंद्रह द्वार इस प्रकार हैं । १- नक्षत्र मण्डलों की संख्या, २--नक्षत्रों के क्षेत्र, ३- एक नक्षत्र के विमानों का परस्पर अंतर, । ४- नक्षत्र मंडल की मेरु प्रति अबाधा, ५- नक्षत्र मंडल की चौड़ाई आदि, ६- नक्षत्र .

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