Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 517
________________ (४६४) मुहूर्तीयगतौ यद्वा वर्धन्ते प्रतिमण्डलम् । त्रियोजनी पंच पंचाशांश्च षण्णवतिः शताः ॥३८४॥ भागा एकयोजनस्य विभक्तस्य सहस्रकैः । त्रयोदशमितैः सप्तशता च पंचविशंया ॥३८५॥ युग्मं ॥ अथवा तो दोनों चन्द्रमाओं की प्रत्येक मण्डल में मुहूर्त गति के अन्दर ३-६६५५/१३२७५ योजन बढ़ता है । इस तरह समझना । (३८४-३८५) अत्र उपपत्ति - योजनद्विशती त्रिंशा या वृद्धिः प्रतिमण्डलम् । ... उक्तापरिरये गुण्या सा द्विशत्यैकविंशया ॥३८६॥ भक्ता त्रयोदशसहस्रादिना राशिना च सां । . दत्तेि त्रियोजनी शेषानंशानपि यथोदितान् ॥३८७॥ युग्मं ॥ इसकी उपपत्ति (सिद्धि) इस प्रकार है - प्रत्येक मण्डल के घेराव में जो २३० योजन की वृद्धि कही है, उसे २२१ से गुणा करके १३७२५ से भाग देने पर ३-६६५५/१३७२५ योजन आता है । (३८६-३८७) सर्वान्तर्मण्डले चन्द्रो जनानां दृष्टि गोचरौ । सहस्रः सप्तचत्वारिंशता त्रिषष्टियुक्तया ॥३८८॥ द्विशत्या च योजनाना एकस्य योजनस्य च । षष्टयंशैरेकविंशत्या तत्रोपपत्तिरूच्यते ॥३८६॥ सर्वाभ्यन्तर अर्थात् सर्व प्रकार से अन्दर के मंडल में होता है, उस समय दोनों चन्द्रमा सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ पूर्ण योजन सात वीसांश (४७२६३ ७/ २०) योजन से लोगों को दृष्टिगोचर होता है । वह किस तरह है ? उसे युक्ति से समझाते हैं:- (३८८-३८६) अन्तर्मण्डल परिधेर्दशांशे त्रिगुणीकृते । .. इन्द्रोः प्रकाशक्षेत्रं स्यात् तापक्षेत्रमिवार्कयोः ॥३६०॥ अर्धे प्रकाशक्षेत्रस्य पूर्वतोऽपरतोऽपि च । . इन्द्वोरपि दृष्टिपथप्राप्तिः विवस्वतोरिव ॥३६१॥ सब से अन्दर के मण्डल के घेराव दशांक का तीन गुणा करना, अतः जो संख्या आयेगी वह सूर्य के ताप (प्रकाश) क्षेत्र के समान, दोनों चन्द्रमाओं का

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