Book Title: Lokprakash Part 02
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 531
________________ (४७८) पुष्प नक्षत्र का १० २०/६७ मुहूर्त भोगने के बाद शेष रहे १६४७/६७ मुहूत भोग्य जब रह जाय तब, चन्द्र उत्तरायण समाप्त करता है, और दक्षिणायन क प्रारम्भ कर देता है । (४७०-४७१) एवं च सर्व नक्षत्र भोगार्धानुभवात्मके । सामर्थ्यादवसीयते याम्योत्तरायणे विधोः ॥४७२॥ न त्वाद्यान्त्यमण्डलाभिमुख प्रसरणात्मके । . याम्योत्तरायणे स्यातां भानोरिव विधोरपि ॥४७३॥ और इसी तरह से सर्मथन करते चन्द्रमा के दक्षिणायन और उत्तरायण सर्व नक्षत्रों के आधे भोगने का अनुभव रूप दिखता है । यह चन्द्रायण किसी भानु के अयन (वर्ष के आधा भाग) के समान प्रथम और अन्तिम मंडल सन्मुख ही प्रसरण (विस्तार) नहीं करता । (४७२-४७३) किंचलोक प्रसिद्ध मकर कर्क राशि स्थितः तंतः । औचित्यं याम्यमयनं विधुरारभते क्रमात् ॥४७४॥ चन्द्रमा लोक प्रसिद्ध मकर और कर्क राशि में आता है तब से अनुक्रम से उत्तरायण और दक्षिणायन का आरम्भ करता है । (४७४) युगे युगे चतुस्त्रिंशं शतं चन्द्रायणानि वै । त्रिंशान्यष्टादशशतान्येभिश्च युगवासराः ॥४७५॥ प्रत्येक युग में १३४ चन्द्रायण होते हैं, अतः प्रत्येक युग दिन १३४४१३४४/ ६७ अर्थात् १८३० होते हैं । (४७५) युगातीतपर्वसंख्या कार्या पंचदशाहता । क्षिप्यन्ते तत्र तिथयः पर्वोपरिगतास्ततः ॥४७६॥ राशेस्माद्विवय॑न्तेऽबम रात्राः ततः परम् । ऋक्षमासार्थेन भागे यल्लब्धं तद्विचार्यते ॥४७७॥ लब्धे समेऽङ्के विज्ञेयमतीतं दक्षिणायनम् । विषयेऽङ्के पुनर्लब्धे व्यतीतमुत्तरायणम् ॥४७८॥ शेषां स्तृ द्धारितानं शान् सप्त षष्ठया हरेत् बुधः । लब्धाकं प्रमिता वर्तमानायनदिना गताः ॥४७६॥

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