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(३७४) इसका भी सारा स्वरूप हरिवर्ष क्षेत्र के गंधापति वैताढय पर्वत के अनुसार हैं । इसमें कोई विशेषता नहीं है । (३३)
उद्करम्यकवर्ष त्यापाग् हैरण्यवतंस्य च । रुक्मी नाम्ना वर्षधरः प्रज्ञप्तः परमर्षिभिः ॥३४॥
रम्यक क्षेत्र से उत्तर दिशा में और हैरण्य वंत क्षेत्र से दक्षिण में रूक्मि नाम का वर्षधर पर्वत आया है । (३४)
स पूर्व पश्चिमायामो दाक्षिणोत्तर विस्तृतः । . .. महाहिमवतो बन्धुरिवात्यन्त समाकृतिः ॥३५॥
यह पर्वत पूर्व पश्चिम में लम्बा है और उत्तर-दक्षिण चौड़ा है । महाहिम वंत पर्वत के बन्धु समान सम्पूर्ण रूप में एक समान आकृति वाला है । (३५) .
रक्म रूप्यं तदस्यास्तीत्यन्वर्थ कलिताभिधः । सर्वात्मना रूप्यमयो रुक्मिनामसुराश्रितः ॥३६॥ . ..
रुक्म अर्थात् चान्दी। यह पर्वत रूप्यमय होने से, इसका नाम रूक्मि सार्थक पड़ा है । इसका अधिष्ठात्रा देव भी रुक्मि नाम का है । (३६) - "इदं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्तौ ॥ क्षेत्र समास वृत्तौ तु रूक्मं श्वेत हेम तन्मय अयमुक्त इति ज्ञेयम् ॥" ___ 'रुक्मि का यह अर्थ जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में है, जबकि क्षेत्र समास की टीका में रूक्म अर्थात श्वेत सुवर्ण, और रूक्मि अर्थात् श्वेतसु वर्णमय अथ किया है।'
विशिष्टैरष्टभिः कूटैः सोऽतितुंगैरलंकृतः । दिगङ्गनानामष्टानां क्रीडा पर्वतकैरिव ॥३७॥ .
इस रुक्मी पर्वत के आठ दिक्कुमारियों के क्रीडा पर्वत समान, आठ सुन्दर ऊंचे शिखर है । (३७)
आद्यं पूर्वार्णवासन्नं सिद्धायतन संज्ञितम् । रूक्मि देवाधिष्ठितं च रूक्मिसंज्ञं द्वितीयकम् ॥३८॥ रम्यकाधीश्वर स्थानं तृतीयं रम्यकाभिधम् । तुर्यं नरकान्ता देव्या नरकान्ताभिधं च तत् ॥३६॥ .