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तत्रैव दाढायां तस्मात् द्वीपात् पंचशतान्तरः । आदर्शमुखसंज्ञोऽस्ति द्वीपः पंचशतायतः ॥२६४॥ तावदेव च विस्तीर्णो जगत्यास्तावदन्तरः । सैकाशीतिः पंचदशशती परिरयोऽस्य च ॥२६॥ जम्बूद्वीप दिशि भवेत् जलादस्य समुच्छ्यः । सार्द्धा त्रियोजनी भागाः पंचवष्टिः पुरोदिताः ॥२६६॥ द्वौ क्रोशौ लवण दिशि जलादस्य समुच्छ्रयः ॥ दाढायां पुनस्तत्रैवातीत्य योजनषट्शतीम ॥२६७॥
इसी ही दाढा में इसी ही द्वीप से पांच सौ योजन से अन्तर में तीसरा आदर्श मुख नाम का द्वीप है, वह पांच सौ योजन लम्बा-चौड़ा है, जगती से पांच सौ योजन के अन्तर में है और पंद्रह सौ एकासी योजन में है । जम्बूद्वीप की ओर इसकी जल के ऊपर की उंचाई साढ़े तीन योजन पैंसठ, पचानवे अंश सद्दश है और लवण समुद्र की ओर दो कोश सद्दश है । (२६४-२६७)
षट् योजन शतायामविष्कम्भोऽश्वमुखाभिधः । द्वीपो भाति शतैः षड्भिः जगत्या दूरतः स्थितः ॥२६८॥ योजन त्रितयोनानि शतन्येकोनविशंतिः । द्वीपस्यास्य परिक्षेपः प्रोक्तः शास्त्र परीक्षकैः ॥२६६॥ साद्धौ चतुर्योजनी सच्चत्वारिंशल्लवाधिकाम् । द्वीपदिश्युन्न तोऽदस्योऽब्धिदिशितु क्रोशयामलम् ॥३००॥
इसी दाढा में इसी द्वीप से छ: सौ योजन के अन्तर में छ: सौ योजन लम्बा चौड़ा, चौथा 'अश्वमुख' नामक द्वीप है, जो जगती से छ: सौ योजन दूर है । इसका घेराव उन्नीस सौ योजन. में तीन योजन कम अर्थात् अठारह सौ सत्तानवे योजन है । जल ऊपर इसकी उंचाई द्वीप की ओर साढ़े चार योजन और चालीस-पंचानवें अंश ४०/६५ समान है और समुद्र की ओर दो कोस समान है। (२६८-३००)
सप्तभिः योजन शतैरस्ति द्वीपस्ततः परम् । अश्वकर्णाभिधः सप्तशतान्यायतविस्तृतः ॥३०१॥ जगत्यास्तावता दूरे जम्बू द्वीप दिशि स्फुटम् । योजनान्यार्द्ध षष्ठानि भागान् पंच दशोच्छ्रितः ॥३०२॥