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(२६३) मातंजनगिरिस्तस्य सीम्न्यथो मंगलावती । विजयोऽस्य च सीमायां गिरिः सौमनसाभिधः ॥४४॥
अंजन गिरि पर्वत के बाद रम्यक् नाम का विजय आता है । उसकी सीमा पर उन्मत्ता नाम की नदी आती है । उसके बाद 'रमणिक' नाम से विजय आता है, उसकी सीमा में 'मातंजन' पर्वत है, फिर 'मंगलावती' विजय है, उसकी सीमा में सौमनस नाम का गजदंत के आकार का पर्वत है । (४३-४४)
अस्य पश्चिमतो देवकु खस्तदनन्तरम् । गिरिविधुत्प्रभा नामा गजदन्ताकृतिः स्थितः ॥४५॥
इस सौमनस पर्वत की पश्चिम में 'देव-कुरु' है, उसके बाद गजदंत के आकार वाला विद्युत्प्रभ नाम का पर्वत आता है । (४५)
तस्य पश्चिमतः पक्ष्मविजयः परिकीर्तितः । ततोऽङ्कापाती क्षितिभृत् सुपक्ष्मो विजयस्ततः ॥४६॥ ततः क्षीरोदाख्यनदी महापक्ष्माभिधस्ततः । विजयोऽन्तेऽस्य च पक्ष्मपातीतिक्षितिभृम्दवेत् ॥४७॥ पक्ष्मावतीति विजयः कथितस्तदन्तरम् ।
शीत स्रोता नाम नदी तस्य सीमाविधायिनी ॥४८॥ . इसके पश्चिम में 'पक्ष्म' नामक वियज है, उसके. अन्तिम भाग में अंका पाती नामक पर्वत है, उसके बाद 'सुपक्ष्य' नाम से विजय है, फिर क्षीरोदा नाम की नदी है । उसके बाद 'महापक्ष्म' नाम का विजय है, उसकी सीमा में पक्ष्मपाती नाम का पर्वत है । उसके बाद पक्ष्मावती नाम का विजय है । उसकी सीमा में 'शीत स्रोता' नामक नदी आती है । (४६-४८)
तस्याः पश्चिमतः शंखविजयोऽन्तेऽस्य राजते । आशीविषगिरिस्तस्माद्विजयो नलिनोऽग्रतः ॥४६॥ नद्यन्तर्वाहिनी तस्य मर्यादा कारिणी भवेत् । तस्याः पश्चिमतः ख्यातो विजयः कुमुदाभिधः ॥५०॥ सुखावहो गिरिस्तस्य मर्यादाकारको भवेत् । ततः परं च नलिनावतीति विजयो मतः ॥५१॥ शीता स्त्रोता नदी के पश्चिम दिशा में 'शंख' नामक विजय है, इसकी