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(३२५) मानो चारों तरफ फिरते हुए चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे रूपी बैलों को घूमते समय में बंधन के लिए मनुष्य क्षेत्र में खड़ा किया, एक ऊंचा स्तंभ हो इस तरह लगता है । (७) ,
नीलवन्निषधोन्मत्त दन्तिनोयुध्यतो मिथः । . मध्ये सीमास्तम्भ इव गजदन्ताद्रि दन्तयोः ॥८॥
मानो परस्पर दन्तादन्ति युद्ध कर रहे, गजदंत रूपी दांतवाले नीलवान और निषध पर्वत रूपी दो हाथियों के बीच, मानो सीमा स्तंभ हो इस तरह लगते है। (८)
तिर्यग्लोक महाब्जस्य स्पष्टाष्टा शादलश्रियः।
बीजकोश इवान्तःस्थः परागभरपिंजरः ॥६॥
मानो आठ निर्मल दिशाओं रूपी सुन्दर पत्र वाले, तिर्छा लोक रूपी महान कमल के पुष्कल पराग के कारण पीला बना हुआ, अन्दर का बीज कोश हो ऐसा लगता या दिखता है । (६)
जम्बूद्वीपोरूपोतस्य मुक्तस्यलवणार्णवे । कूप स्तम्भ इवोत्क्षिप्तः प्रभासित पटांचित्ः ॥१०॥
मानो लवण समुद्र में रखा हुआ जम्बू द्वीप रूपी महान प्रवहण (नाव) का प्रभा रूपी श्वेत पट ऊंचा किया हो ऐसा कूप स्तंभ लगता है (१०)
न्यस्तपादो भद्रशाल काननास्तरणोपरि । ___.. पश्यन्निवोवंदमोऽयं नगेन्द्रः सेविनो नगान् ॥११॥ - मानो भद्रशाल वन रूपी शय्या पर खड़े होकर सेवक सद्दश अन्य पर्वत पर सेठ के समान टकटकी नजर कर रहा हो ऐसा लगता है । (११)
नरक्षेत्र कटाहेऽस्मिन्नानापदार्थ पायसम । - पचतो विधि सूदस्य दर्वीदण्ड इवोन्नतः ॥१२॥
मानो मनुष्य क्षेत्र रूपी कढ़ाई में विविध पदार्थों रूपी क्षीरान्न पकाते हुए विधाता रूपी रसोइये का खड़ा हुआ कडछी का दण्डा लगता है । (१२)
प्रादुश्चूलः सौमनसोत्तरीयोंशुजलप्लुतः । देवार्चेकइवोन्नन्दिनन्दनारामधौतिकः ॥१३॥ एकादशभिः कुलकं॥ मानो प्रकट - खुला दिखने वाला, चूल वाला, सौमन स बान रूपी उत्तरीय