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समभूतल से एक हजार योजन नीचा है और निन्यानवे हजार योजन से कुछ विशेष- इतना ऊँचा है अर्थात् इसकी कुल एक लाख योजन से कुछ विशेष ऊंचाई कहलाती है।'
पृथ्व्यप्जीव पुद्गलात्मा जम्बूद्वीपोऽस्ति वस्तुतः। पृथ्व्यप्जीव पुद्गलानां परिणामो यदीदृशः ॥४६॥
यह जम्बू द्वीप वस्तुतः पृथ्वी, जल, जीव और पुद्गल का बना है क्योंकि पृथ्वी, जल, जीव और पुद्गलों के ही ऐसे परिणाम होते हैं । (४६)
शाश्वतोऽशाश्वतश्चायं द्रव्यतस्तत्र शाश्वतः । वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यायैः स्यादशाश्वतः ॥४७॥
तथा ये शाश्वत हैं, वैसे अशाश्वत भी हैं । १- द्रव्य से शाश्वत हैं और २वर्ण, गंध; रस तथा स्पर्श रूप पर्यायो से अशाश्वत हैं । (४७) .
अथास्य जम्बूद्वीपस्य भाति वज्रमणीमयः । : प्राकारः आगमे ख्यातो जगतीत्यपराख्यया ॥४८॥
इस जम्बूद्वीप के चारों तरफ वलयाकार वज्रमणि कोट-किला आया है। जो आगम में 'जगती' के नाम से प्रसिद्ध है । (४८)
धेनुपुच्छाकृतिः सोऽष्टौ योजनानि समुच्छ्रितः । योजनानि द्वादशास्य मूले विस्तार आहितः ॥४६॥
इसका आकार गाय की पंछ के समान है। इसकी ऊंचाई आठ योजन और मूल विस्तार बारह योजन का है । (४६) ।
मूलादुत्पत्यते यावद्धनुः क्रोशादिकं किल । मूलव्यासस्ताव्वतोनस्तत्रतत्रास्य जायते ॥५०॥
मूल से जितना धनुष्य अथवा कोस आदि चढ़ते हैं । उतने. धनुष्य या कोस आदि मूल के विस्तार में से बाद की जो संख्या आती है वह उसका, उस स्थल के आगे का व्यास या विस्तार होता है । (५०)
मूलादूर्ध्वं कोशयुगे व्यतीते तत्र विस्तृतिः । सार्धरूद्धयोजनानि सर्वत्रैवं विभाव्यताम् ॥५१॥
जैसे कि मल से ऊपर आधा योजन से इसका विस्तार १२ -- = ११- योजन