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कहा? मुझमें ऐसा क्या देखा जो तुमने मुझे भिखारी कह दिया, क्या मेरे हाथ में भीख माँगने का कटोरा है ?" 'नहीं, भाई मैंने तो बस तुम्हारे चेहरे को देखकर ऐसा कहा । तुम्हारे हाथ में क्या है ?'
'मेरे हाथ में तलवार है । '
'ओह, तो तुम्हारे पास तलवार है। इसमें धार भी है या नहीं ?'
इतना सुनते ही तो सेनापति को गुस्सा चढ़ने लगा। उसने म्यान में से तलवार निकाल ली और कहा 'महाराज, इसमें धार भी है और जो तुमने मुझे भिखारी कहा था, अगर किसी और ने कहा होता तो उसका सिर कटकर ज़मीन पर होता । पर तुमने कहा है इसलिए मैंने तुम्हें. ..... I'
सो तो ठीक है, पर तुम्हारी तलवार में वास्तव में धार है या ..... ? यह सुनते ही सेनापति ने तलवार तुरन्त पास में ही खड़े पेड़ की डाली पर चला दी। डाल नीचे आ गिरी और बोला, 'देख लिया मेरी तलवार में कितनी धार है ?'
संत ने कहा, 'अरे भाई, तुम तो मेरी बात का बुरा मान गए। मैं तो तुम्हारे सवाल का जवाब दे रहा था।' 'क्या मतलब ?' सेनापति ने पूछा ।
‘यही कि मेरे द्वारा अपमान के दो शब्द कहने पर तुम्हें जो गुस्सा आया है न्, यही है नरक ।'
सेनापति चौंका, उसे सारी बात समझ में आ गई। वह संत के पैरों में गिर पड़ा और बोला 'महाराज, मैं आपकी रहस्यमयी बात को समझ नहीं पाया। मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ ।'
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'यही है स्वर्ग ।'
नानू सीची ने उसे उठाया और कहा -
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'क्या मतलब ?' पुनः सेनापति ने पूछा ।
नानू सीची ने कहा, 'तुम्हारे द्वारा गुस्सा करना ही नरक है और माफ़ी माँगने के लिए झुक जाना ही स्वर्ग है ।' नानू सीची ने कहा,
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तो यह है स्वर्ग और यह है नरक । एक ओर नरक, एक ओर स्वर्ग । जिनसे ग़लती हो जाए, उन्हें माफ़ कर दो, यह है स्वर्गिक व्यवहार । इसी तरह ख़ुद से ग़लती हो जाए, उसके लिए माफ़ी मांग लो, यह है स्वर्गिक बरताव । याद रखो, स्वर्ग उनके लिए है जो ग़लती करने वालों को माफ़ कर देते हैं, और स्वर्ग उनके लिए है जो दूसरों पर रहम करते हैं। ईश्वर उन्हीं से प्यार करता है जो दयालु और क्षमाशील होते हैं ।
आप बहीखाते में शुभ-लाभ और शुभ खर्च लिखने के अभ्यस्त होंगे। मेरा अनुरोध है शुभ कर्म और शुभ व्यवहार भी लिखे जाने चाहिए। शुभ सोचो, शुभ बोलो, शुभ देखो, शुभ सुनो, शुभ करो ये पाँच बातें ही जीवन की पंचामृत बन जानी चाहिए।
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