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तीनों को क्रमशः रखने पर ही एक संपूर्ण धर्म-शास्त्र का निर्माण होता है।
हालांकि बाइबिल और कुरआन पर मेरा पूरा अधिकार नहीं है, पर जीसस से मैंने प्रेम, शांति और क्षमा की भावना ग्रहण करने की कोशिश की है, और मुसलमानों की धार्मिक आस्था का मैंने खूब अनुमोदन किया है। मैं मानता हूँ कि मुसलमानों के द्वारा ऊँट-बकरों की बली देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है, पर जब अपने ही हिन्दू भाइयों को बली देते या मांस खाते हुए सुनता हूँ तो मुसलमानों से रखी जाने वाली दूरी अपने आप ही मिट जाती है। हम जैन हैं और जैन भी सभी हिन्दू ही होते हैं । इस भारत में जन्म लेने वाले सभी भारतीय हैं और हिन्दुस्तान में जन्म लेने वाले हिन्दू हैं । जैन और हिन्दू कोई अलग-अलग नहीं हैं । भेद के ज़माने गए, अब तो एक-दूसरे को गले लगाने का ज़माना आ गया है। एक-दूसरे से लड़कर भला हम अब तक क्या पा सके हैं ? हिन्दू और मुसलमान दोनों ने ही आपस में लड़कर इस पावन धरती को कष्ट ही दिया है। हम अगर जात-पांत-पंथ को भूलकर इंसानियत की इज़्ज़त करना सीखें, तो यह धरती स्वर्ग और जन्नत जैसी हो जाएगी।
एक अच्छा और नेक इंसान बनना अपने आप में एक अच्छा हिन्दू, एक अच्छा जैन, एक अच्छा मुसलमान खुद ही बन जाना है। एक अच्छा मुसलमान बनने का अर्थ यह नहीं है कि तुम एक अच्छे इंसान बन गए, पर यदि तुम एक अच्छे इंसान बन जाओ, तो तुम अपने आप ही एक अच्छे जैन, एक अच्छे हिन्दू और एक अच्छे मुसलमान बन जाओगे, क्योंकि तब तुम्हारे जीवन में कोई विरोधाभास न होगा। दुनिया के हर धर्म ने आखिर इंसान को इंसान के काम आना सिखाया है। जीवन को पवित्रता से जीने का पाठ पढ़ाया है। ईश्वर की प्रार्थना के साथ हर दिन की शुरुआत करने का मंत्र दिया है। माता-पिता की इज़्ज़त करो, घर में सभी मिल-जुल कर रहो, दीन-दुखियों के काम आओ, अपनी इच्छाओं और विकारों पर विजय प्राप्त करो। दुनिया के हर धर्म की हमें यही सब सिखावन है। धर्म को तो जो जिए उसका धर्म है। बाकी धर्म तो वैसा ही है जैसे अलमारियों में सजी हुई क़िताबें।
एक बहुत पुरानी घटना है। कहते हैं कि एक बार एक नौका बीच समुद्र से गुजर रही थी कि अचानक बड़े जोर का तूफ़ान उठा। नौका डगमगाने लगी। लोगों में हाहाकार मच गया। सभी के हाथ प्रार्थना में खड़े हो गए। तभी एक यक्षराज प्रगट हुआ। यक्षराज ने कहा, 'यह तूफान शांत हो सकता है, पर तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी और शर्त यह है कि तुम्हें अपने-अपने धर्म का त्याग करना होगा। जो व्यक्ति अपने धर्म का त्याग करने के लिए तैयार है, उसकी जान बच जाएगी। जो धर्म को त्याग करने को तैयार नहीं है, वह इस उफनती लहरों की भेंट चढ़ जाएगा।
नौका पर सवार सभी लोग यक्षराज के परामर्श पर सहमत हो गए। मरता आख़िर क्या न करता?' फिर भी एक व्यक्ति ऐसा बचा था जो मौन रहा। वह व्यक्ति था अरहन्नक। उससे भी पछा, तो उसने जवाब दिया -
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