Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 139
________________ कर भी अपनी नमाज़ अदा करता है, और हज़ार कष्ट झेल कर भी रोज़ा रखता है। आप भी ऐसी कोई कट्टरता जीवन के साथ जोडिए तो सही। धर्म खुद आपकी पहचान बनेगा। मैं मुसलमानों की कौमी कट्टरता का समर्थन नहीं करूँगा पर उनकी धार्मिक कट्टरता से प्रेरणा लेने की बात अवश्य करूँगा। ___ मेरे देखे, दुनिया भर के समस्त धर्मों के नामों और तौर-तरीकों के स्तर पर भेद है, किन्तु उनकी मूल भावना और मूल संदेश एक ही है। हम अगर सत्यानुरागी और सत्यग्राही बनकर हर धर्म के करीब जाएँगे, तो हर धर्म से अपने लिए अच्छाइयों को लेकर आएँगे। हर धर्म की अपनी खूबियाँ हैं; अच्छे-से-अच्छे विचारक, चिंतक, मनीषी और चमत्कारी लोग हर धर्म में हैं। हम अपनी ओर से कभी भी किसी भी धर्म को हेय न मानें, हर धर्म की अच्छाइयों को अपने जीवन में ग्रहण करने की कोशिश करें। हम जिस धर्म के अनुयायी हैं, हमें धर्म-परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है। अगर आवश्यकता है तो अपने धर्म की गहराइयों में उतरने की आवश्यकता है, दूसरों के धर्मों से कुछ सीखने और ग्रहण करने की आवश्यकता है। हमें धर्म के बाहरी रूप से नहीं, अपने जीवन के उत्थान, कल्याण और प्रगति से सरोकार है । जिस भी मार्ग को जीने से जीवन का आध्यात्मिक कल्याण हो, वह हर मार्ग धर्म का मार्ग है। हर धर्म का संदेश हर व्यक्ति के लिए है। ऐसा नहीं है कि जैन धर्म के संदेश जैनों के लिए हो। महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त को जीने का अधिकार केवल जैनों को ही नहीं है, वरन् प्राणिमात्र को यह अधिकार प्राप्त है। गीता में वर्णित कर्मयोग, भक्तियोग और अनासक्ति योग का संदेश केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं है और न ही दया, शील, समाधि और प्रज्ञा की प्रेरणा केवल बौद्धों के लिए ही है। प्रेम और सेवा के द्वारा ईश्वर की आराधना का स्वरूप ईसाइयों के लिए भी उतना ही है, जितना हिंदुओं और जैनों के लिए है। अगर मुसलमान कहते हैं कि सामाजिक छुआछूत और भेदभाव से ऊपर उठकर सारी इंसानियत को गले लगाया जाए, ईमान, इंसानियत और इबादत को अपने जीवन में स्वीकार किया जाए तो यह प्रेरणा प्राणिमात्र के लिए है। ये जीवन मूल्य हर धर्म में हैं। इस बात का मूल्य नहीं है कि कौनसी प्रेरणा किस किताब ने दी, बल्कि मूल्य इस बात का है कि कौन-सी किताब इंसानियम के कितनी काम आई। धर्म को जितना गुणानुरागी बनकर जीएँगे, हर धर्म से कोई-न-कोई अच्छाई ग्रहण कर ही लेंगे। मैंने भी अपने जीवन में कई धर्मों से कई अच्छी बातें सीखी हैं। मैंने महावीर से अहिंसा का पाठ तो सीखा ही है, अनेकान्त की प्रेरणा तो पाई ही है। मैंने बुद्ध से साधना के क्षेत्र में चित्तानुपश्यना' और जीवन में मध्यम मार्ग की कला पाई है। राम से घर-परिवार की मर्यादा और त्याग-परायणता का गुर सीखा है, तो कृष्ण से कर्मयोग का पाठ पढ़ा है। मेरे जीवन पर रामायण और गीता दोनों का ही ज़बरदस्त प्रभाव रहा है। हालांकि मैंने रामायण और गीता का नाम लिया है, पर सच्चाई तो यह है कि मुझे रामायण, गीता और महावीर के जिन सूत्र में कोई फ़र्क ही नज़र नहीं आता। ये तीनों कोई स्वतंत्र शास्त्र नहीं हैं। ये तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं। AUTFE 138 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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