Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 143
________________ व्यक्ति से क्रोध-कषाय, राग-द्वेष, वैर-वैमनस्य तो छूटते नहीं और छोड़ने के नाम पर आलू, गाजर, मूली को छोड़ना चाहते हैं । तुम्हारे जीवन का वास्तविक कल्याण कषायों और विकारों के त्याग से ही होगा। तुम मूल मुद्दे पर आओ और ऐसे इंतज़ाम करो कि जिनसे तुम्हारे अंतरमन के कषाय टूट सकें, भीतर का तमस छंट सके, आत्मा निर्मल हो सके। धर्म तुम्हें यही प्रेरणा देता है कि तुम वे सब कार्य करो जिनसे तुम्हारे क्रोधकषाय कटें, भीतर की गाँठे शिथिल हों, लेश्याएँ निर्मल हों, तुम सहज, सरल, सुखमय चेतना के स्वामी बनो । मैंने उस महिला के पतिदेव से कहा कि तुम एक काम करो कि आज से दो घंटे मौन रखोगे। वह बगलें झाँकने लगा कि दो घंटे मौन ! आदमी के लिए क्रोध- कषायों का त्याग करना, प्रतिक्रियाओं को छोड़ना कितना कठिन हो जाता है और गाजर-मूली को छोड़ना कितना आसान हो जाता है। वे बोले – 'दो घंटे तो बहुत ज्यादा होते हैं, एक घंटे का नियम दिला दीजिए।। मैंने कहा - 'ठीक है, समय तय कर लीजिए।' उन्होंने कहा - 'रात को दस से ग्यारह बजे ।' मैंने कहा - 'यदि मौन लेना है, तो उस समय लेओ जब घर में सब लोग हों। घर में सब सो जाएँ उसके बाद एक घंटा क्यों, दस घंटे का मौन रखो, तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला । मौन की सार्थकता तभी है जब सब बोलें, पर तुम चुप रहो । धर्म को जीवंत कीजिए। एक महिला कह रही थी मैं रोज़ाना चार घंटे मौन रखती हूँ। मैंने पूछा कितने बजे से कितने बजे तक ? तो कहने लगी- दोपहर में बारह से चार बजे तक। मैंने पूछा उस समय घर में और कौन रहता है ? उसने जवाब दिया- अकेली ही रहती हूँ । पतिदेव दुकान चले जाते हैं। मैंने कहाअब उस समय मौन नहीं रहोगे तो क्या दीवारों से बाते करोगे ! - एक महिला ने बताया कि उसकी सास रोज़ाना तीन सामायिक करती है। मैंने पूछा – सामायिक में क्या करती हैं ? तो जवाब मिला- टी.वी. देखती हैं । अब ज़रा आप ही बताओ कि यह कैसा धर्म ! तुम धर्म का छापा - तिलक तो लगा रहे हो, पर जी कुछ और रहे हो। मेरे भाई, ऐसे कार्य करो कि जिनसे तुम्हारे जीवन में निखार आए, क्रोध-कषाय कम हों और चित्त में शांति, समता, सरलता आए। आपके द्वारा सदैव यही प्रयास हो कि औरों को सुख पहुँचे, औरों को सुकून मिले। मूल बात यह है कि आपका व्यवहार कैसा है, आप जो सामायिक व्रत- प्रतिक्रमण-प्रार्थना करते हैं, वे आपके व्यवहार में प्रकट होकर आते हैं या नहीं। अगर उपवास और सामायिक के बाद भी चित्त में शांति और समता नहीं उतरती तो वे सारे व्रत और उपवास मात्र समय-निर्वाह है। धर्म अन्तरात्मा से जुड़ने का उपक्रम है। आत्मबोध और आत्म शुद्धि का लक्ष्य लिये हुए किसी भी कार्य को सम्पादित करो, वह धर्म की आभा लिए हुए होगा। धर्म बहुत छोटा-सा है । उसका ढिंढोरा ज्यादा नहीं है। तुम धर्म को समझो, धर्म के मर्म को समझो और फिर अपने दैनिक जीवन में, अपने व्यावहारिक 142 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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