Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 36
________________ सफलता की मंज़िल वहीं मिलती है जहाँ तनावरहित आनंदमूलक स्थिति रहती है। कहते हैं, रगड़ खाकर दुनिया में सबसे पहले कोई चीज उत्तेजित होती है तो वह माचिस की तीली है। माचिस की तीली को ज्यों ही जरा-सी रगड़ लगी और वह आग से सुलग उठती है। हम देखें अपने-आप को। दुनिया में रहने वाला हर आदमी धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक अपने-आप में देख ले कि कहीं वह माचिस की तीली तो नहीं बन चुका है ? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ है कि एक छोटी- सी रगड़ लगी और आग सुलग उठी? कहीं किसी का एक छोटा-सा शब्द कानों में पड़ा और हम उत्तेजित हो गए? किसी की एक छोटी-सी गाली हमें क्रोधित कर गई। संभव है, आप चल रहे थे और चलते-चलते ही किसी का पाँव आपके पाँव पर आ गया और आप शांतिनाथ से अशांतिनाथ हो गए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जैसे माचिस की तीली जरा-सी रगड़ पाकर सुलग उठती है, ऐसे ही हम कभी चिंता के कारण, कभी तनाव के कारण, कभी क्रोध के कारण, कभी बोरियत के कारण सुलग उठते हों। क्या कभी आपने माचिस की तीली पर ध्यान दिया है ? उस माचिस की तीली के एक डंडी होती है, वैसे ही हम भी एक डंडी की तरह हैं। तीली के ऊपर एक गोल आकार रहता है वैसे ही हमारा यह माथा तीली की तरह गोलाकार होता है। माचिस की तीली के सिर तो होता है जैसे हमारे होता है। लेकिन हममें और तीली में फर्क मात्र इतना-सा ही है कि माचिस की तीली के सिर तो होता है पर दिमाग़ नहीं होता और हमारे सिर भी होता है और दिमाग़ भी। माचिस की तीली इसीलिए झट से सुलग उठती है क्योंकि उसके पास दिमाग़ नहीं, केवल सिर होता है। और हमारे पास तो मन भी है, बुद्धि भी है, मस्तिष्क भी है, सोचने और समझने की क्षमता भी है और विवेक और ज्ञान का उपयोग करने का सामर्थ्य भी है। अत: हम माचिस की तीली न बनें। अपने तनावों को छोड़ सकते हैं तो जरूर ही उनका त्याग कर दें। मैं आपको कुछ ऐसी मूलभूत बातें बता रहा हूँ कि जिन बातों को ध्यान में रखकर आप तनाव से बच सकते हैं और अगर तनाव है तो भी उसे त्यागने का मार्ग अपना सकते हैं। वे नुस्खे, जीवन की कला के ऐसे जीवित अमृतमंत्र हैं, जिनको अपनाने से हमें कभी तनाव नहीं होगा। तो पहली बात- अगर हम अपने जीवन में ध्यान रख सकते हैं तो मैं कहूँगा कि जीवन में चाहे जैसी परिस्थितियाँ आएँ, आप किसी भी परिस्थिति से विचलित मत होइए। उस विपरीत परिस्थिति का सामना कीजिए, उस समय अपनी बुद्धि का श्रेष्ठतम उपयोग कीजिए। आपके पास जितनी भी ईश्वरप्रदत्त, प्रकृतिप्रदत्त बुद्धि है उसका श्रेष्ठतापूवर्क उपयोग कीजिए। आप पाएँगे कि आप अपनी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ हो चुके हैं। माना कि आपके आसपास चार लुटेरे आ चुके हैं और आप अकेले हैं। अगर आप पहले ही क्षण यह सोच बैठे कि अब मैं क्या करूँगा तो तत्क्षण ही आपके भीतर तनाव पैदा हो जाएगा और आप 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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