Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 49
________________ कहा आप सचमुच क्षमावंत हैं। मैंने आपको गुस्सा दिलाने की सतरह बार कोशिश की, पर आप इसके बावजूद शांत ही रहे। आपने सचमुच क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है। गृहस्थ की बात सुनकर संत मुस्कुराया और कहने लगा, 'बस करो, ज़्यादा तारीफ़ मत करो। मुझसे ज़्यादा क्षमाशील तो वे कुत्ते होते हैं जो सौ बार बुलाने और दुत्कारने पर भी दुबारा आ-जाया करते हैं । अरे, जिसका पालन कुत्ते भी कर सकें, उसमें प्रशंसा की कौन-सी बात है ?' जो जीता वही सिकन्दर । जो दुनिया को जीते वह सिकन्दर, जो ख़ुद को जीते वह महावीर । महावीरत्व का रास्ता शांति के द्वार से निकलता है। मैं शांति का पुजारी हूँ, शांति का पथिक हूँ, शांति का अनुयायी हूँ। शांति मेरी सहेली है। एक ऐसी सहेली जो दिन में भी मेरे साथ रहती है और रात को भी। जिसने अपने जीवन में शांति को अपनी सहेली बना लिया उसे दिन में भी आनंद है और रात में भी। कल जब एक सज्जन ने मुझसे पूछा कि क्या आपको रात को नींद बराबर आती है? मैंने कहा, भला जिसे कोई चाह और चिंता नहीं, जो परमात्मा की हर व्यवस्था में राज़ी रहता है उसे भला चैन की नींद क्यों न आएगी? अंतरमन में यदि शांति है तो जब जो करोगे, वह अपनी पूर्णता लिये होगा। मैं आपको साधना और सफलता का इतना-सा रहस्य ज़रूर समझा देता हूँ कि जब जो करो, पूरे मन से करो। भोजन करो तो केवल भोजन करो। भोजन करते वक्त इधर-उधर की मत सोचो। सडक पर चलो तो सजगतापर्वक केवल चलो। इधर-उधर ताक-झाँक मत करो। सोओ तो केवल सोओ। सपने मत बुनते फिरो। जहाँ एक काम एक मन' का मंत्र जीवन में जिया जाएगा वहाँ स्वतः शांति और आनंद-दशा रहेगी ही। ध्यान रखो केवल ध्यान या सामायिक की बैठक लगाना, हर रोज़ अलसुबह मंदिर में धोक लगा आना या हनुमान चालीसा का पाठ कर लेना – यही धर्म नहीं है। इंसान का पहला धर्म तो उसकी शांति होना चाहिए। मन में शांति है तो घर भी मंदिर है। सांसों का अनुभव करना भी ध्यान है। मन में ही अगर शांति नहीं है तो भले ही मंदिर चले जाओ मन तम्हें वापस धक्का देगा। तब तम मंदिर में बैठ न पाओगे। वैसे भी मंदिर में क्या बैठोगे जब मन ही मरघट बना हुआ है। आख़िर जलती चिता पर तो कोई भी ज़िंदा आदमी जाकर नहीं बैठेगा। शांति के कबूतर जलती चिता पर नहीं, स्नेह और सुरक्षा के चंदन-वृक्ष पर जाकर बैठा करते हैं। तुम शांति के स्वामी बनोगे, तो तुम्हारी पत्नी भी तुमसे प्यार करेगी। तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारी सौम्यता पर फ़िदा होंगे। तुम्हारे माँ-बाप भी तुम्हें अपने आँचल से लगाना चाहेंगे । हो-हल्ला करने वाला चाहे पति हो या पिता अथवा बेटा, नापसंद ही किया जाएगा। यदि आप शांत और सौम्य हैं तो आपकी पत्नी को आपके पास ही स्वर्ग नज़र आएगा।आप यदि बदमिज़ाज़ हैं तो आपसे दूर रहने में ही उसे सुकून महसूस होगा। ज़रा सोचिए कि आप एक-दूसरे की क़रीबी चाहते हैं या दूरी? मैं चाहता हूँ कि गीत की ये पंक्तियाँ आपके लिए सार्थक हों आप जिनके क़रीब होते हैं, UFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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