Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 98
________________ बीरबल ने पहला तीर चलाया तो निशाना चूक गया। वह तुरन्त ही बोला, 'यह थी मुल्लाजी की तीरंदाज़ी।' बीरबल दूसरा तीर भी चूक गया। इस पर उसने इसे राजा टोडरमल की तीरंदाज़ी बताया। संयोग से तीसरा तीर सीधा अपने लक्ष्य पर जाकर लगा। तब बीरबल ने गर्व से कहा - 'और इसे कहते हैं बीरबल की तीरंदाज़ी'। अकबर हँस पड़े। वे समझ गए कि बीरबल ने यहाँ भी बातों की तीरंदाज़ी की है। सही समय पर किया गया सही सकारात्मक शब्द का प्रयोग अपने सही सकारात्मक परिणाम ही देता है। आप अपनी वाणी में केवल एक चीज़ जोड़ लीजिए और वह है मिठास। आपके जीवन में चामत्कारिक परिणाम और प्रभाव समा जाएँगे। विनम्रता और मिठास ही सफलता की मौलिक आवश्यकता है। एक बात और ध्यान में रखें कि जितना बोलें उससे ज़्यादा सुनने की क्षमता रखें। कुदरत ने हमें इसीलिए मुँह एक दिया है और कान दो। इसका मतलब साफ है हम जितना बोलते हैं, उससे दगना सनें। किसी को सत्य तभी सनाइये. जब आप उससे दगना सत्य सनने को भी तैयार हों। सबको 'आप' कहकर संबोधित करें। अपने से बड़ों को तू कहना उनका वध करने के समान है। __ ये सब वे सूत्र हो सकते हैं, जिनको अपनाकर हम जीवन को व्यवस्था दे सकते हैं, जीवन को एक बेहतर स्वरूप दे सकते हैं, जीवन को इन्द्रधनुष के रंगों की तरह उत्सव बना सकते हैं। हमारी सजगता हमारे काम आएगी। यही सजगता जो बाहर की तरफ है, जब वही सजगता भीतर की तरफ मुड़ जाएगी तो वही सजगता साधना बन जाएगी। भीतर और बाहर दोनों तरफ सजगता रखने का नाम ही साधना है। बाहर की सजगता भीतर काम आएगी। भीतर की सजगता बाहर काम आएगी। हर व्यक्ति अपनी जिंदगी में देहरी का चिराग बने ताकि उसकी रोशनी बाहर तक भी जाए और भीतर तक भी पहुंचे। व्यक्ति सुन्दर हो या न हो, पर उसका जीवन ज़रूर सुन्दर होना चाहिए। हमेशा स्नान करें, साफ़-सुथरे कपड़े पहनें। अच्छी सोच रखें और सबके साथ अच्छा व्यवहार करें। काम को कल पर टालने की बजाय आज ही करने की आदत डालें और जो भी काम करें, पूर्ण करें, पूरी निष्ठा और पूरी बुद्धि से करें। हर समय प्रसन्न और आनंदित रहें। कभी वातावरण भारी भी बन जाए, तब भी शांति रखें और वातावरण को फिर मधुरता तथा विनम्रता का उपयोग करते हए वातावरण को फिर से सहज करने का प्रयत्न करें। बुरे हालात में यदि हम मात्र 10 मिनट तक खद पर विजय प्राप्त करने का तरीक़ा सीख लें, तो आप अपने सौ दिनों को दुःखी होने से बचा सकते हैं। अन्त में इतना ज़रूर अनुरोध कर देता हूँ : रोज़ाना सुबह पन्द्रह योगासन ज़रूर करें। दस मिनट प्राणायाम करके अपनी आँखों और अपनी साँसों को भी मधुर और सुन्दर बनाएँ। 20 मिनट ध्यान ATTER 97 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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