Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 104
________________ दिखाई दे रहा है, कब निर्धन हो जाए कोई नहीं जानता। आपने ऐसे लोग भी देखे होंगे जो कल तक हवेलियों के मालिक थे आज कहीं नौकरी कर अपनी गुज़र-बसर कर रहे हैं । इसीलिए कहा करता हूँ कि लक्ष्मी जी की पूजा ज़रूर करना, पर भरोसा भगवान का ही रखना । लक्ष्मी तो चंचल है कभी भी चली जाएगी, पर भगवान तो तुम्हें आश्रय देंगे, अपनी गोद में रखेंगे और तुम्हारे दुःख और पीड़ा का सम्बल बनेंगे । मैं जब आकाश को देखता हूँ तो लगता है किस बात का अभिमान करें । अरे, हमसे तो वह ऊपर वाला बड़ा है फिर किस बात का अहंकार करें और जब ज़मीन को देखता हूँ तो सोचता हूँ कैसा और किसका अभिमान आख़िर तो सभी को इस धरती में, इसी मिट्टी में समा जाना है। इसलिए अगर संपन्न हैं तो आप गर्व मत कीजिए, सोचिए हमारे योगानुयोग ऐसे रहे कि ईश्वर ने हमें संपन्न बना दिया और अगर ग़रीब हैं तो भी योगानुयोग कि हम संपन्न न हो पाए। क़िस्मत को न कोसिए, अवश्य ही कोई कारण रहा होगा । विनम्रता को अपनाने के लिए कहूँगा कि जब भी किसी से मिलें हमेशा प्रणाम के साथ, नमन-भाव से शुरुआत करें। विनय और विनम्रता आपका प्रभाव बन जाए। प्रातः काल उठते ही अपने माता-पिता के चरण छूकर उन्हें प्रणाम करें। जो विनम्रतापूर्वक प्रणाम कर माता-पिता का आशीर्वाद लेता है उसे दिनभर सफलताएँ ही मिलती हैं। घर के सभी सदस्यों को चाहे वे बड़े हों या बराबर के सभी को प्रणाम कीजिए यहाँ तक कि पति-पत्नी भी आपस में एक-दूसरे को प्रणाम करें। कुछ दिनों पूर्व आपने समाचार पत्रों में पढ़ा होगा, टी.वी. पर भी देखा होगा। भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद लाहोटी जी ने वहाँ उपस्थित अपनी बुजुर्ग माँ को पंचांग नमस्कार समर्पित किए थे। इसमें माँ की गरिमा तो बढ़ी ही, पर लाहोटी जी का गौरव दस गुना बढ़ गया। आप भी अगर अपने पिता को जो अभी-अभी स्टेशन पर उतरे हैं बिना भीड़ की परवाह किए, इसी प्रकार प्रणाम कर सकें तो सचमुच आप संस्कारित माता-पिता की संतान हैं। आजकल मैं देखा करता हूँ कि लोगों को प्रणाम करने में बड़ी शर्म - सी महसूस होती है। लेकिन मैं कह देना चाहता हूँ कि जिन्होंने जितने कम प्रणाम किए बुढ़ापे में उनके उतने ही घुटने दर्द करते हैं। कभी झुके नहीं तो कमर दुखेगी, घुटने दुखेंगे, मोटापा बढ़ेगा। जिसने अल सुबह घर के सभी बड़े लोगों को प्रणाम कर लिया तो समझो उसने स्वस्थ रहने का राज़ पा लिया। क्योंकि प्रणाम करना भी एक तरह का व्यायाम ही है। याद रखें जीवन में तीन लोग पंचांग प्रणाम के हकदार होते हैं - माता-पिता, गुरुजन और ईश्वर । इन तीनों को खड़े-खड़े प्रणाम करना इनका अपमान है। घुटने टेककर दोनों हाथ जोड़कर और सिर नमाकर प्रणाम करिये और उनका हाथ अपने सिर या पीठ - कमर पर आने दीजिए। तभी उनके हाथों की ऊर्जा, किरणें और आभा, वात्सल्य और आशीर्वाद की छाया हमारे सिर पर रहेगी । - दूसरी बात, मुस्कुराने की आदत डालिये। किसी से मिलें, बात करें मुस्कुराकर बोलें, मुस्कुराकर मिलें । Jain Education International For Personal & Private Use Only LIFE 103, www.jainelibrary.org

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