Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 111
________________ ख़ुद उन्हें गुज़ार रहा है। जब तक कोई व्यक्ति आलस्य और प्रमाद का जीवन जीता रहेगा याद रखिए वह अपने जीवन में कुछ भी बन सके इसकी कोई संभावना नहीं है। अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो प्रमाद और आलस्य का त्याग कीजिए वरना नौवीं कक्षा मैंने कभी सप्लीमेन्ट्री से पास की थी, वैसे ही धक्के मार-मार कर आप भी पास होंगे। पर जिस दिन आप अपने जीवन में कड़ी मेहनत को जोड़ लेंगे, मैं दावे के साथ कहता हूँ कि आप भी दूसरे चन्द्रप्रभ बन जाएँगे। मेरिट लिस्ट में आप नम्बर ला पाएँ कि न ला पाएँ लेकिन फर्स्ट क्लास पास होने से दुनिया की कोई ताक़त आपको रोक नहीं सकेगी।अगर मेहनत से जी चुराओगे तो न घर के रहोगे, न घाट के। व्यक्ति अगर कुछ करना चाहता है तो वह हर दिन चौबीस घंटों में से बारह घंटे अवश्य मेहनत करे। फिर चाहे बारह घंटे दिन के हों या रात के। मैं स्वयं मेहनत करता हूँ। मैं ऐसी रोटी खाना पसंद नहीं करता जो बगैर मेहनत के कमाई गई हो और ऐसे लोगों की भी रोटी खाना पसंद नहीं करता जो बगैर मेहनत की रोटी खाता हो। मेहनत की रोटी खाई जाए और मेहनत की रोटी ही खिलाई जाए। हराम की रोटी न खाओ, न खिलाओ। हर रोटी पर पसीने की बूंदों के मोती अवश्य सजे हों। आख़िर जो मेहनत का है वही ईमान का कहलाता है और जो ईमान का होता है, वही बरक़त करता है। बेईमानी से कमाए गए धन के जाने के रास्ते फिर वैसे ही होते हैं, जिस तरीके से हमने उसे कमाया है। जब मैं आपको मेहनती होने की प्रेरणा दे रहा हूँ तो मैं यह भी कह देना चाहूँगा कि किसी भी काम को छोटा न समझें। हर काम को ऐसे करें जैसे कि प्रभु की प्रार्थना और पूजा किया करते हैं। काम को केवल काम न बनाएँ, काम को भी राम का नाम बना डालें। काम को भी इस तरह करें कि कर्म स्वयं आपकी पूजा बन जाए। जब कोई मुझसे कहता है कि आशीर्वाद दीजिए तो मैं उस हर व्यक्ति को एक संकेत अवश्य देता हूँ कि तुम काम ही ऐसा करो कि तुम्हारा काम ख़ुद आशीर्वाद बन जाए। जैसे कोई अपनी माँ से आशीर्वाद माँगे तो ध्यान रखे आशीर्वाद माँगने से नहीं मिला करता। आप अपनी माँ के प्रति अपना व्यवहार ही ऐसा करें कि वो ख़ुद अपने दिल से दुआएँ दे। __ कोई भी काम छोटा न समझा जाए। जो भी काम करें हर काम को अपनी ओर से पूर्णता देने का प्रयास करें। अधूरा काम करने की बजाय काम न करना कहीं ज़्यादा अच्छा है। अगर बुहारी भी लगाएँ तो ऐसे कि जैसे मंदिर में बैठकर माला जपते हैं । अगर खाना भी बनाएँ तो इतनी तन्मयता से कि जैसे कोई सेक्सपीयर या सुमित्रानंदन पंत किसी सुन्दर कविता का सृजन कर रहे हों। अगर पढ़ाई भी करें तो इस तन्मयता से कि मानो नदीम-श्रवण किसी संगीत का एलबम बना रहे हों। पौंछा लगाना या टीचिंग करके हाथ खर्च की व्यवस्था करना छोटा काम नहीं है । जो आदमी काम को छोटा या बड़ा समझता है, वही इस अपेक्षा में रहता है कि कोई दूसरा उसकी मदद करे। मैं कहना चाहूँगा कि किसी के सामने हाथ फैलाकर माँगने से तो छोटा काम ही सही, पर उसे करना कहीं ज़्यादा अच्छा है। दान और दया की रोटी खाने की बजाय प्रेम और मेहनत का पानी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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