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दोनों ही झुकने को तैयार हैं, वहीं सकारात्मक सोच अपने आप समाधान का रास्ता तलाश लेती है। शस्त्रों के बल पर, पिछले पचास सालों में न तो भारत कोई हल निकाल पाया है और न पाकिस्तान । तीन-तीन युद्ध हो जाने के बावजूद किसी भी समस्या का समाधान न हो पाया। अयोध्या में बन रहे मंदिर या अयोध्या में हटा दी गई मस्जिद से समस्या का समाधान नहीं हो सका। यह बात जान लेनी चाहिए कि जो लोग राम के नाम से विवाद करते हैं वे राम के सम्मान से चूक रहे हैं। राम विवाद का नहीं, बल्कि संवाद का विषय है। संवाद भी
कायम किया जा सकेगा जब दोनों समाज अपनी बेहतर और सकारात्मक सोच लेकर उपस्थित होंगे। ___ आप कोई मीटिंग कर रहे हैं, उसमें चार लोग यह सोचकर आए हैं कि वे इस मीटिंग में कोई निर्णय नहीं होने देंगे। उस स्थिति में तीन घंटे की बहसबाजी के बाद भी क्या निष्कर्ष निकलेगा, यह पहले चरण में ही पता लग जाता है। हाँ, अगर सभी यह सोच कर मीटिंग में भाग लें कि बिना निर्णय लिए हम मीटिंग पूरी नहीं करेंगे, तो अवश्य ही कुछ-न-कुछ समाधान निकल ही आएँगे। इसलिए यदि विवाद के, बिखराव के, टूटन के कोई कारण होते हैं तो वे हमारे नकारात्मक सोच के ही परिणाम होते हैं । उनका मूल बिन्दु तो हमारी छोटी और संकीर्ण विचारधारा ही होती है। मंदिर में जाना पहली ज़रूरत नहीं है और न ही पहले मस्ज़िद जाकर इबादत करने की ज़रूरत है। इस देश को तो पहले अपने दृष्टिकोण को सही और विचारों को सकारात्मक बनाने की पहली ज़रूरत है । सकारात्मक सोच अपने आप में ईश्वर की सर्वोपरि उपासना है।
___ महान् सोच महान् कार्य करवाती है और छोटी सोच छोटे-छोटे कार्य । महान् सपने देखोगे तो बड़े-बड़े काम करोगे और छोटे सपने देखोगे तो छोटे ही कार्य कर पाओगे। अपनी सोच को अपने जीवन की सबसे बड़ी ताक़त बनाइए। सोचने की शक्ति कुदरत ने एकमात्र इंसान को दी है। अगर इंसान अपनी सोच को बेहतर बनाने में सफल हो जाए, अपनी सोच को सही और सार्थक दिशा देने में कामयाब हो जाए तो सोच बड़े-से-बड़े इतिहास को जन्म दे सकती है, विज्ञान का आधार बन सकती है, दुनिया का कायाकल्प कर सकती है। आज अगर हमारे जीवन से सोच-विचार जैसे तत्त्व को निकाल दिया जाए तो जीवन में पीछे बचता ही क्या है ? मनुष्य और जानवर में बहुत अधिक फ़र्क नहीं है। फ़र्क इतना ही है कि जानवर किसी भी बिंदु पर सोच और समझ नहीं सकता जबकि मनुष्य जन्म से ही अपने भीतर यह सामर्थ रखता है। अपनी सोचने-समझने की क्षमता के कारण ही हम मनुष्य हैं। मन का श्रेष्ठ उपयोग करना ही मनुष्य की मनुष्यता है।
दुनिया में कोई मंदबुद्धि क्यों रह जाता है ? क्योंकि उसके सोचने-समझने की क्षमता का विकास नहीं हो पाया। जिसका मस्तिष्क जितना विकसित होगा उसकी विचारधारा भी उतनी ही समृद्ध होगी। अगर धन कमाना अमीरी का लक्षण है तो महान् विचार भी व्यक्ति के जीवन की पूँजी है। विचार अगर इंसान के जीवन का धन है तो सोचो कि तुम्हारे पास विचारों का कितना धन है? जिसके विचार महान्, वह धनवान और संकीर्ण विचारों वाला निर्धन । मैं एक अमीर आदमी हूँ। अपने नाम से या अपने पास में एक पैसा रखता नहीं,
UFER
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