Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 127
________________ के साथ वैसा नहीं करूँगी। आजकल एक बहुत प्रसिद्ध धारावाहिक चलता है - 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी।' तय है कि बहू भी कभी सास बनेगी, और सास भी कभी बहू थी। हो सकता है आपकी सास अच्छी न रही हो, पर आपका तो यह संकल्प अवश्य रहना चाहिए कि मैं एक अच्छी सास बनूँगी। जो शिकायतें मुझे अपनी सास से रहीं, उन शिकायतों का सामना अपनी बहू को नहीं होने दूंगी। ___मैं जिस परिवार में जन्मा हूँ। वह काफ़ी बड़ा परिवार है। मेरी माँ के चार जेठ और चार देवर थे और हम पांच लड़के भी। पर हमने अपनी माँ को कभी झल्लाते या झुंझलाते हुए नहीं देखा। उन्हें कभी झगड़ते, चिल्लाते या जोर से बोलते नहीं देखा। वह हमेशा प्यार करती रही। हमें अपने पिताजी द्वारा मारे गए थप्पड़ तो याद हैं, पर माँ के द्वारा मारा गया एक भी थप्पड़ आज तक याद नहीं है। मैंने अपनी माँ से पूछा, 'माँ', आपकी इतनी शांति का राज़ क्या है ? तो माँ ने कहा, 'बेटा, जब बड़े लोग डाँटते हैं तो मेरे मन में ऐसा आता है कि वे बड़े हैं, अब यदि बड़े नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा? अत: मुझे बड़ों के प्रति कभी बुरा न लगा। जब छोटों से ग़लती हो जाती तो इसलिए बुरा नहीं लगता था कि वे छोटे हैं, छोटों से ग़लती नहीं होगी तो फिर किससे होगी? छोटों की गलतियों को माफ़ कर देने में ही आपका बड़प्पन है । बड़ों की डाँट को सह लेना और छोटो की ग़लतियों को माफ़ कर देना – यही है सकारात्मक सोच का सिद्धान्त। जीवन में आप प्यार को अपनाइए, यही सबसे बड़ी दौलत है। अगर आप सकारात्मक सोच ले आएँ तो चुटकियों में समाधान निकलता है। आप जोड़, बाकी, गुणा, भाग के गणित से भली-भाँति वाकिफ़ हैं। मान लीजिए किसी ने आपको आपकी ग़लती पर डाँट दिया। स्वाभाविक है डाँट सुनना बुरा लगा।आपको गुस्सा आया। आप वह जगह छोड़कर निकल गए। ऐसा करके आपने प्रतिक्रिया को तो रोक लिया, पर सामने वाले का दिल जीतने में आप सफल न हुए। मेरी सलाह है कि आप घर छोड़कर न जाएँ। केवल एक मिनट के लिए अपने मन को धैर्य और शांति धारण करने का सुझाव दें। दो मिनट बाद आप पाएँगे कि आपकी मानसिकता में अब किसी भी तरह की उग्रता नहीं है । पाँच मिनट बाद आप ख़ुद भी एक गिलास पानी पी लीजिए और दस मिनट बाद आप उन्हें भी एक गिलास पानी ले जाकर दे दें। आपकी विनम्र प्रस्तुति आपकी ग़लती को माफ़ करवा देगी और वातावरण पन्द्रह मिनट में ही नोर्मल हो जाएगा। हमारी ओर से होने वाला इस तरह का व्यवहार ही सकारात्मकता के सिद्धान्त की बुनियाद है। आपका सकारात्मक होना आपके लिए प्लस है । उग्र होकर के घर से बाहर निकल पड़ना आपके जीवन का माइनस है। अब ज़रा आप ही बताइए कि प्लस वाला काम करना पसंद करेंगे या माइनस वाला? अगर आप पाँच मिनट के लिए भी किसी के प्रति सकारात्मक सोच बना लें तो पत्थर भी पानी पर तिर सकता है, टूटे हुए परिवार जुड़ सकते हैं, रूठे हुए लोग आपस में गले मिल सकते हैं, बिखरे हुए धर्म और सम्प्रदाय एक-दूसरे के क़रीब आ LIFE 126 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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