Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 97
________________ स्टेशन पर पिकनिक मनाने चले जाएँ। एक-दो महिने की ख़ुशी चाहिए तो आज ही शादी कर लें । एक साल की ख़ुशी चाहिए तो किसी करोड़पति की विरासत अपने नाम लिखवा लें और मौज़ करें, पर अगर ज़िंदगी भर की ख़ुशी चाहिए तो आप जो करते हैं, उस कार्य से प्यार करने की आदत डाल लीजिए। आप पाएँगे कि हारी हुई बाजी आप फिर से जीत गए हैं। छोटी-छोटी सजगता रखकर हम स्वयं को व्यवस्थित करने की साधना को सार्थक कर सकते हैं। अगर चाहिए तो बस थोड़ी-सी जागरूकता, सौम्यता और मिठास । हम अपने हर कार्य को अपना आईना समझें। अधिक से अधिक जितने बेहतर तरीके से उसको संपन्न कर सकते हैं उतनी ही कुशलतापूर्वक कार्य को संपन्न करें। बहुत से काम ख़राब ढंग से करने की बजाय थोड़े से काम अच्छे ढंग से करना ज़्यादा दमदार है । हम अपने हर कार्य को इतने सलीके और सम्पूर्णता के साथ पूरा करें कि अगर स्वर्ग के देवता भी घर से गुजर जाएँ तो वे दो पल ठहरें और हमारी पीठ पर हाथ रखकर हमें बधाई दें कि 'शाबाश, तुमने बहुत अच्छे ढंग से अपना काम पूरा किया।' आखिरी निवेदन : जीवनशैली और कार्यशैली को व्यवस्थित करते हुए अपनी भाषा को भी व्यवस्थित कीजिए। बोलने में उग्रता या हेकड़ी काम की नहीं होती। यदि आप नहीं जानते कि बोलना कैसे है तो अच्छा है कि चुप रहना सीखें । शब्द बड़े शक्तिशाली होते हैं । शब्दों का यदि ढंग से प्रयोग न करो, तो ये बीस साल के बने हुए पुराने संबंधों को दो मिनट में ही तोड़ डालते हैं । शब्दों के आधार पर ही पता चलता है कि कौन बुद्ध है और कौन बुद्ध । अच्छे शब्द प्रमोद देते हैं, हल्के शब्द विनोद करवाते हैं । आप अपने शब्दचयन पर ग़ौर कीजिए कि कहीं आप बात-बेबात में गाली-गलौच तो नहीं कर बैठते अथवा आप किसी का उपहास तो नहीं करते ? आप टेढ़ी टिप्पणियाँ करने के आदी तो नहीं हैं ? याद रखें कि अच्छी मीठी-मधुर भाषा ही इंसान को लोकप्रिय बनाती हैं। बीरबल की हाज़िरज़वाबी से आप सब वाक़िफ़ हैं। एक बार अकबर ने बीरबल पर व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘बीरबल, तुम सिर्फ़ बातों के तीरंदाज़ हो, अगर तीर-कमान पकड़कर तीरंदाज़ी करनी पड़े तो हाथ-पाँव फूल जाएँगे।' यह बात सुनकर सभी दरबारी बड़े ख़ुश हुए । उन्हें लगा कि बीरबल आज फँस गया है, किन्तु बीरबल कहाँ हार मानने वाला था ? उसने कहा, 'हुजूर, मैं बातों के साथसाथ अच्छा तीरंदाज़ भी हूँ ।' बादशाह अकबर और अन्य सभी दरबारी बीरबल के साथ मैदान में आ पहुँचे । बीरबल के हाथों में तीर-कमान पकड़ा दिया गया और कुछ दूरी पर एक लक्ष्य रखकर निशाना साधने को कहा गया। LIFE 96. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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